राणा प्रताप मेवाड़ के यशस्वी योद्धा राजा हैं। 7.5 फीट लंबे व तगड़े राणा अपने महल के कक्ष में कुछ सोचते हुए टहल रहे हैं।
अचानक ही द्वारपाल आकर महाराणा को सूचना देता है कि राजा मानसिंह अकबर का संदेश लेकर आए हैं। राणा सिर हिला कर अनुमति देते हैं।
मानसिंह अंदर आते हैं।
मान सिंह ---- राणा जी को मेरा प्रणाम।
राणा ---- प्रणाम। आपका स्वागत है। कहिए कैसे आना हुआ।
मान सिंह ---- राणा मेरे आका अकबर ने आपको मेरे द्वारा संदेश भेजा है कि आप मेरी अधीनता स्वीकार करें। अन्यथा चित्तौड़ के दुर्ग को मटियामेट कर दिया जाएगा।
राणा ---- हे क्षत्रिय कुल - कलंक, हे विदेशी अकबर के गुलाम, मानसिंह मुंह संभाल कर बात करो। अन्यथा मैं भूल जाऊंगा कि तुम एक दूत हो।
मानसिंह ---- आप क्या कर लोगे राणा? अब समय बदल गया है। हमारे पक्ष में अधिकतर राजा व सेनायें हैं। हम चित्तौड़ को मिनटों में मटियामेट कर सकते हैं।
राणा (राणा का हाथ उनकी विशाल तलवार की मूठ तक जाता है। मानों वे तलवार खींचना ही चाहते हों। परंतु कुछ सोचकर वह रुक जाते हैं।) ---- हे कुलांगार मानसिंह में तुम जैसे सियार के मुंह नहीं लगना चाहता। जाओ उस गीदड़ अकबर से कहना अब मैं रणक्षेत्र में ही उससे मिलूंगा।
मानसिंह (मानसिंह घबरा जाता है।) ---- राणा आप व्यर्थ ही नाराज होते हो। अकबर की अधीनता स्वीकार कर लो। अकबर आपको धन, पद सभी कुछ देगा। सारे राजस्थान का सूबेदार भी वो आपको ही बना देगा।
राणा ---- सच्चे क्षत्रिय धन व पद से बड़ी अपनी मातृभूमि को समझते हैं। हम एक दिन विदेशी मुगलों की सत्ता अपने प्रिय भारत देश से उखाड़ फेंकेंगे।
अकबर से कहना एक शेर कभी किसी गीदड़ के सामने सिर नहीं झुकाता है। चाहे गीदड़ संख्या में कितने ही ज्यादा क्यों ना हों।
मानसिंह (मानसिंह घबरा जाता है और डर कर अपने पायजामें में ही मूत्र त्याग कर देता है। लेकिन बाहर से निडर होने का अभिनय करता है।) ---- ठीक है घमंडी राणा अब युद्ध क्षेत्र में ही मुलाकात होगी। (और डर कर जल्दी-जल्दी वहां से भाग जाता है। भागते - भागते वह बार-बार डर कर पीछे राणा को देखता जाता है।)
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राणा प्रताप और हल्दीघाटी का युद्ध
Historical Fictionयह कहानी महाराणा प्रताप द्वारा दुष्ट आक्रांता से लड़ने की है.