LOVE YOURSELF

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कीर्ति(लिखती है): जिस तरह इरफ़ान ने कारवाँ में कहा था, लोगों को हक़ जताना आता है, रिश्तें निभाना नहीं।
हमारा समाज कहीं न कहीं इसी दौड़ में तो फॅसा हुआ है। हर किसी को हक़ चाहिए। हर किसी को औहदा चाहिए। हर किसी को दूसरों के ऊपर ताक़त चाहिए। पर इसकी क़ीमत में न समझ मन्ज़ूर है, ना ईमानदारी।

कीर्ति के लफ़्ज़ों के सन्नाटों को चीरता हुआ एक आवाज़ कमरे की ओर बढ़ता चला आया।

नदीश: तुमने ये फ़ॉर्म क्यों भरा कीर्ति ? पापा ने माना किया था न तुम्हे, तुम मान भी गई थी। फिर अचानक ये सब क्या मज़ाक है?

कीर्ति: इसमे मज़ाक की क्या बात है नदीश, तुम जानते हो मुझे हमेशा से ही फोटोग्राफी में दिलचस्पी थी। और फ़िर अब तो सब सेटल हो गया है। अनिरुद्ध भी कॉलेज चला गया। तुम भी काम में इतना आगे बढ़ गए हो। अब मेरे काम करने से क्या दिक्कत है भला ?

नदीश: मैंने कब कहा कि तुम्हारे काम करने से किसी को दिक्कत है? हम इतने पुराने खयालातों के थोड़े है कि घर की बहू को काम करने से रोकें।
( नदीश ने जम के ठहाका लगाया।। हा हा हा हा हा। )

कीर्ति: तो फ़िर तुम मुझ पर नाराज़ क्यों हो रहे थे, जब कोई दिक्कत ही नहीं है?
(कीर्ति ने वही सवाल वापस नदीश के सामने रख दिया, जो उसने 20 साल पहले अपने शादी के बाद पूछा था।)

नदीश: अरे, मैंने कब कहा कि कोई दिक्कत नहीं है। मैंने तो बस कहा कि तुम्हारे काम करने से कोई दिक्कत नहीं है। पर जो काम तुम करना चाहती हो उससे तो दिक्कत है। हमारा ऑफिस जॉइन कर लो, बिज़नेस में भी मदद मिल जाएगी, तुम काम भी कर लोगी। वैसे भी जानवरों के पीछे भागने की उम्र रही नहीं तुम्हारी।

नदीश अपने ताने पर खुद हस्ता हुआ कमरे से बाहर चला गया। वहाँ रह गयी तो वापिस कीर्ति और उसकी तन्हाई।

कीर्ति ने खुद को वापिस अपने लफ़्ज़ों के सन्नाटों में लपेट लिया।

कीर्ति(लिखती है): ठहराव जो ज़िन्दगी मे था
काश की मेरे मन मे भी होता
जो तू बस कुर्बानियाँ देना न सिखाती
तो शायद ज़िन्दगी का मंज़र ही कुछ और होता।

हमारे समाज मे हमेशा से ही लड़कियों को हमेशा से एडजस्ट करना सिखाया जाता है। क्या करना है कैसे करना है, उसे हमेशा कोई और ही बताता है। पहले पिता उसके रास्ते चुनता है ये कहकर की उसके लिए यही अच्छा है, और फिर पति, ये कहकर की उसके परिवार के लिए यही अच्छा है। पर हैरानी मुझे किसी औरत के जीवन में आये इन दो मर्दो पर नहीं बल्कि उस सबसे ख़ास औरत पर होती है, जिसे हर लड़की अपना रोल मॉडल समझकर अपना बचपन उसके हवाले कर देती है।। माँ।।
हाँ, माना आजकल बच्चे अपना व्यक्तित्व खुद बनाते है, पर इस सच्चाई को कोई नहीं बदल सकता कि, उसी व्यक्तित्व की मज़बूत नींव बचपन में माँ-बाप रखते है। खास करके माँ। बच्चा वो ख़ाली नई स्लेट होता है, जिसमें माता-पिता की कही हर बात जाने-अनजाने हमेशा के लिए छाप छोड़ देती है। ज़्यादातर भारतीय मिडिल क्लास बच्चों की तरह मेरा भी बचपन उन्हीं सीखों में गुज़रा।
ये काम लड़कियों का है, इस समय पर लड़कियों को घर वापस आ जाना चाहिए, ये कपड़े लड़कियों को पेहेनना चाहिए, ऐसी नौकरी लड़कियों के लिए नहीं होती। और ज़िन्दगी की सबसे बड़ी सीख, जो लगभग रोज़ आपको मल्टीविटामिन की ख़ुराक की तरह मिल ही जाती थी- लड़कियों की प्राथमिकता होती है उसके परिवार के लोग, न कि वो खुद , तभी तो परिवार अच्छे से चलता है।

दादी ने भी यही उसूल निभाये, माँ ने भी और मुझसे भी इसी की आशा की गई। क्योंकि बेतुके रिवाज़ों को संस्कार का नाम देके हमारे सर पर थोपना तो हमारे समाज की परंपरा रही है।
मेरी कहानी कोई टिपिकल आदम ज़माने के खडूस खानदान वाली नही है। कहने के लिए तो मुझे आसमां भरकर आज़ादी दी गयी थी, पर जब मेरी दुनिया को करीब से देखोगे, तो तुम्हे पता लगेगा कि असल मे मेरा आसमां ही मुट्ठी भर का था।
बचपन से घर मे प्यार मिला, भाई और मैं साथ स्कूल गए, मैं पढ़ने में भी अच्छी थी, तो घर वालों का गुरूर भी बनती गयी। सब कुछ अच्छा ही चल रहा था कि ग्रेजुएशन में अव्वल आने के बाद मैंने घर पे अपना दिल खोल के रख दिया।
कीर्ति: मैं वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बनना चाहती हूँ। अमेरिका में इंटर्नशिप के लिए सेलेक्ट हो गयी हूँ। आप लोगों ने जो तस्वीरें अच्छी है बोली थी, वो सारी भेज दी थी मैंने, उन्हें पस्सस........
थड़ड़ड़..... मेरी उमड़ती हुई खुशी में पापा का फेंका हुआ काँच का गिलास पत्थर सा पड़ा और मेरे उम्मीदों के घड़े को संभलकर टूटने तक का मौका नहीं मिला।

पापा: दिमाग ख़राब हो गया है तुम्हारा? ये नया भूत कहा से चढ़ा तुम्हारे सर पर। ये तस्वीरें लेना शौक़िया ठीक था, पर अब तुमको जंगलों में जाकर जानवरों की तस्वीरें लेनी है?

माँ: यहाँ हम सब तुम्हारे शादी के सपने बुन रहे हैं, और तुम शहर छोड़कर वनवास की तैयारियां कर रही हो? अच्छी हो इतनी पढ़ाई में, खत्म करो ये और सरकारी परीक्षा देकर अच्छे नौकरी में घुस जाओ। लोगों को क्या जवाब देंगे, की बेटी इतनी अच्छी पढ़ाई लिखाई छोड़कर ये बेकार के कामों में क्यों लग गयी।

अचानक से मुझे महसूस हुआ कि उनका मुझे शह देना बस इसलिए था क्योंकि मेरी हर सफलता उनके ग़ुरूर को दुनियाँ के सामने बड़ा होने दे रही थी। उस प्यार की हक़दार मैं नहीं मेरी तमाम डिग्री और मेरिट सर्टिफिकेट्स थे।

कीर्ति: पर माँ मुझे नहीं करनी सरकारी नौकरी, आईएएस अच्छा होता है, पर मुझे नहीं करना। हमें...

माँ: हाँ तो कोई बात नहीं, नदीश अच्छा कमा लेता है। शादी के बाद तुमको कुछ साल सोचने के लिए भी मिल जायेंगे। इत्मिनान से सोच कर फैसला कर लेना।

कीर्ति: अब ये नदीश कौन है, और शादी बीच में कहा से आई? मुझे.....

माँ: बीच मे कहाँ आयी? पढ़ाई पूरी हो गयी है तेरी, अब शादी ही तो अगला कदम है। बेटा ज़िन्दगी में सब सही समय पर हो जाये न, तभी अच्छा लगता है।

माँ ने उस दिन वो हाथ सर पर प्यार से कम और फुसलाने के लिए ज़्यादा फेरा था। वो अच्छे से जानती थी कि वो मुझे किस मायाजाल में डाल रही थी। मेरे खुले आसमानो में मदमस्त उड़ते सपनो के लिए इससे इलीट पिंजरा भला और क्या होता। समय के उसी सदियों पुराने हवाले ने मेरी ज़िंदगी का भी हवाला निकाल दिया ।

इस्से पहले की मैं कुछ समझ सकती, या क्या करना चाहिए ये सोच सकती, मेरी शादी हो चुकी थी। सब मेरी शादी में खुश थे, सिवाय मेरे। मेरी खुशियों की कीमत पर हज़ारो लोगों के दावत और मिठाईयों का आराम से बंदोबस्त हो गया था, आखिर खुशियाँ कोई कम कीमती थोड़े न होती है।
सबके हस्ते चेहरे मुझे ये यक़ीन दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि ये मेरे ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन फैसला था। पर मैं जानती थी, उस दिन मैं कहीं हमेशा के लिए खो गयी थी।
उस एक दिन ने ऐसी कीर्ति को बनाया की इंसान है या रोबोट, मैं खुद भी ये फर्क भूल गयी। दिन हफ़्ते बने, हफ्ते महीने और महीने साल। हर पुरानी टिपिकल इंडियन वीमेन की तरह मेरी भी ज़िन्दगी मेरे पति और बेटे के इर्द गिर्द सीमित रह गयी। अनिरुद्ध मेरी ज़िंदगी की वो वजह था जो मुझे मुस्कुराते रहने की हिम्मत देता था। उसे बचपन से संगीत का बड़ा शौक था, घर मे सबसे छुपा कर, मैं उसे संगीत की क्लास में ले जाती थी। हम साथ प्रतियोगिताओं में जाते, वो जीतता, मैं खुश होती, वो जीतता, मैं खुश होती। इसके आगे कुछ तब तक नहीं हुआ जब तक कुछ साल पहले उसके एक इंटरनॅशनल ऑडिशन में मैंने एक गाना सुना।
अजनबी भाषा में था पर वो अल्फ़ाज़ मेरे दिल मे घर कर गए। बोल थे- तुमने बताया है कि मेरे पास भी वजह है, कि मुझे भी खुदसे प्यार करना चाहिए।
'इस प्यार में बस दिया जाता है' कि दुनियाँ में किसी ने खुद के लिए प्यार बचाने की बात की। खुद को प्यार देने की बात की। खुद को आगे रखने की बात की। बात नई थी, पर दिल मे छप गयी। अगले कुछ महीनों तक अचानक पूरी दुनियाँ बंद हो गयी, सबकी ज़िन्दगी रुक सी गयी, कोरोना आ गया था। सबके साथ मेरी ज़िंदगी भी बदलने वाली थी, पर अच्छे के लिए। मुझे और वक़्त मिला अपने आस पास ग़ौर करने का। अनिरुद्ध के कमरे से एक जानी पहचानी धुन सुनाई दी, ध्यान से सुना, तो पता चला कि अनिरुद्ध सालों से उन संगीतकारों का फैन है जिनकी एक बोल ने मेरे मन को अब तक थाम रखा था। नाम था बी. टी. एस.। दक्षिण कोरिया के 7 युवा जो दुनियाँ को वो सिखा रहे थे, जो पहले कभी किसी ने सिखाना ज़रूरी नहीं समझा। एक वो दिन था, एक आज का दिन है, पिछले डेढ़ सालों में मैंने उस खोयी हुई कीर्ति को वापिस ढूँढा , मज़बूत किया और वो सिखाया जो किसी ने उसे सीखने नहीं दिया। मैंने ख़ुद को बताया कि ख़ुद से प्यार करना ख़ुदगर्ज़ी नहीं होती । अनिरुद्ध भी यही मानता है। सुकून है कि मेरा बेटा कम उम्र में ही समाज के घिसे पिटे उसूलों से ऊपर उठ चुका है। युवा पीढ़ी को ही तो आख़िरकार ये बदलाव लाना होगा।

सच कहूँ तो बात पूरी बस लड़की या लड़के की भी नहीं है। बात है आपकी, एक इंसान की। आपकी ज़िंदगी कैसी होनी चाहिए, भला कोई और आपको क्यों बताये? आपको कैसी नौकरी करनी चाहिए ये आपका सी वी और दिलचस्पी को तय करना चाहिए, आपके घर वालों को या समाज वालो को नहीं।
मैंने थोड़ी सी देर कर दी, पिंजरा मज़बूत जो था। पर अब मेरे पंख तैयार है, अपना नया आसमां ढूँढने के लिए। मैं अपनी उड़ान भरने जा रही हूँ। उम्मीद है कि इससे पहले की मुझे मेरा आसमां मिले, नदीश और उसके जैसे हर इंसान को जो हक़ जताना जानते है, पर रिश्ते निभाना नहीं, उनका खोया हुआ रूह वापिस मिल जाये। उन्हें भी समझ आ जाये कि दुनियाँ में हर किसी को अपने फ़ैसले ख़ुद लेने का हक़ है, कि दुनियाँ उनके इर्द गिर्द नहीं घूमती, की कोई सिर्फ उनसे नहीं ख़ुद से भी प्यार कर सकता है। और ख़ुद से प्यार करने वाला खुदगर्ज़ नहीं होता बस खुश होता है।

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