ए जिंदगी
ज़रा आहिस्ते चल
अभी और
उड़ान भरना है मुझे
अपनी सोच से,
क्या हुआ ...
जो वक्त पे
पकड़ नही ...
पाँव तो ह़ै अभी भी
अपनी ज़मी पे |
चलना है मुझे
अभी और यहाँ
वक्त के छोर तक
अपने हौसलों से,
क्या हुआ ...
जो राह लम्बी है तेरी
भरोसा तो है
खुद से किये हुए
अपने वादो पे|
रहना ह़ै मुझे
अभी और यहाँ
ख़ांक होके भी
ओझल नजरो से,
क्या हुआ
जो सांसे सिसक रही है अब
यकीन है की मैं
जिंदा रहूँगा तुझमे
अपने विचारो से
अपने इरादो से ....
ए जिंदगी...
ज़रा आहिस्ते चल
मंजिल बाकी है अपनी
तेरे राहों में,
तेरी पनाहो में ...
ए जिंदगी
जरा आहिस्ते चल ....
=========================
-- #झाचंदन (#JC 19वाँ मार्च,2015)
=========================