जीवन में "क्यों "............प्रश्नों का "प्रश्न चिन्ह ❓"
बना रहता है ❓
प्रश्नों में उत्तर और उत्तर से प्रश्न
सिलसिला क्यों टूटता इसका नहीं है ❓कब मिलेंगे उत्तर
कब थमेगा सिलसिला
मिलेंगे सब सब लेकिन कैसे? या फिर
नहीं कभी भी मिल पाएँगे उत्तर ❓क्या तभी मिलेगा हल
जब अमृत का अनुभव हो जाए
यह अमृत क्या है ❓
शाँति,
आनंद या फिर अनुभूति ❓—प्रश्नों के कंटक जहाँ शाँत हो जाते
न चुभते न पीड़ित करते हैं
जीवन में न होने से जिसके
प्रश्न पुनः खड़े हो जातेजानने योग्य ही जाना जाए-
यह जानने योग्य है क्या❓
जानने के बाद जिसको
प्रश्न सारे थम जाते
समाधान के स्वर फूटतेदोनों छोर पर वह स्थित है
वह यहाँ भी है और वहाँ भी है
जो सबमें और परे भी सबसे
कर पाओ अनुभव
तो वह बहुत पास .
नहीं तो बहुत दूर है वहवह प्रश्न भी है उत्तर भी है वह
वह वृक्ष भी और बीज भी है वह
जो उचित भी है ,संपूर्ण भी है
अमृत है वह,परमात्मा है वह,परमानंद है
शेष नहीं रह जाता
जिसे जानने के बाद कुछ भी।