जिस प्रकार भारतीय धर्मग्रंथों को ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक नहीं माना जाता रहा है ठीक उसी प्रकार इन धर्मग्रंथों में दिखाए गए महान व्यक्तित्व भी। इसका कुल कारण ये है कि इन धर्मग्रंथों को कभी भी पश्चिमी इतिहासकारों के तर्ज पर समय के सापेक्ष तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत नहीं किया गया।
लेकिन क्या इसका मतलब ये हैं कि हम अपने पौराणिक महानायकों को मिथक की श्रेणी में रखकर इनकी ऐतिहासिक प्रमाणिकता पर हीं प्रश्न उठाने लगे ? या कि बेहतर ये होगा कि इस तथ्य को जानकार कि ऐसा घटित हीं क्यों हुआ , इसकी तह तक जाये और प्रमाण के साथ भगवान श्रीकृष्ण आदि जैसे महान व्यक्तित्व के प्रमाणिकता की पुष्टि करे ? मेरे देखे दूसरा विकल्प हीं श्रेयकर है।
और यदि हम दूसरा विकल्प चुनकर सत्य की तहकीकात करें तो हमे ये सत्य प्रमाणिक रूप से निकल कर आता है कि आज से, अर्थात वर्तमान साल 2022 से लगभग 4053 साल पहले भगवान श्रीकृष्ण का अस्तित्व इस धरती पर था। आइए देखते हैं कैसे?
सर्वप्रथम ये देखते हैं पुराणों और वेदों में वर्णित व्यक्तित्वों को संदेह से देखे जाने का कारण क्या है ? फिर आगे प्रमाण की बात कर लेंगे। वेद , पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों का मुख्य ध्येय भारतीय मनीषियों द्वारा अर्जित किए गए परम अनुभव और ज्ञान को आम जन मानस में प्रवाहित करना था। अपनी इसी शैली के कारण आज भगवान श्रीकृष्ण , श्रीराम जी आदि को ऐतिहासिक रूप से उस तरह से प्रमाणित नहीं माना जाता जैसे कि गौतम बुद्ध , महावीर जैन मुनि, गुरु नानक साहब जी इत्यादि महापुरुषों को।
लेकिन इन धर्मग्रंथों का यदि ध्यान से हम अवलोकन करेंगे तो तो इनके ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक होने के अनगिनत प्रमाण मिलने लगते हैं। इन धर्मग्रंथों में रचित पात्र मात्र किदवंती नहीं अपितु वास्तविक महानायक हैं। जरूरत है तो मात्र स्वयं के नजरिए को बदलने की, जो कि पश्चिमी इतिहासकारों के प्रभाव के कारण दूषित हो गए हैं।
आप पढ़ रहे हैं
चंद्रगुप्त की जुबानी , भगवान श्रीकृष्ण की कहानी
Historical Fictionजिस प्रकार भारतीय धर्मग्रंथों को ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक नहीं माना जाता रहा है ठीक उसी प्रकार इन धर्मग्रंथों में दिखाए गए महान व्यक्तित्व भी। इसका कुल कारण ये है कि इन धर्मग्रंथों को कभी भी पश्चिमी इतिहासकारों के तर्ज पर समय के सापेक्ष तथ्यात्मक...