मंद सलिल हवाओं के झोंके
मन को जब आनंदित करते
निकट सरोवर की फैली वृक्ष-लताएँ
झूम-झूम ख़ुश होकर ख़ुशी दिखातीदेख प्रकृति का यह सुन्दर रूप
लगती यह तो बिलकुल माँ जैसी
उत्पत्ति से लेकर पालन-पोषण का भार वहन कर
कल्याण और विकास का मार्ग दिखाती
खट्टे-मीठे उतार-चढ़ाव और अनुभव में भी इसके
निहित सदैव उच्च आदर्श होते
प्रकाशित जो जीवन के विभिन्न आयामों को करतेमाँ और गुरू बनकर सच्चा शिक्षकों देती है
है यही वास्तविक स्वरूप प्रकृति का
माँ भी है और गुरू भी यही।
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