प्रीत क्या है

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मेरी प्रिय ने एक दिन मुझ से पूछा की नाथ प्रेम क्या है मैं दो पल रुका कुछ चिंतन किया फिर उत्तर दिया प्रीत इश्वर है और प्रेम प्रार्थना जैसे मेरा ये हृदय मंदिर है जिसकी तुम आराध्य हो ,

फिर वो मंद-मंद मुस्काई और पूछा की ईश्वर क्या है स्वामी फिर से मैं दो पल ठहरा कुछ मनन किया और बोला ईश्वर प्रीत है और प्रीति अर्धना जैसे तुम में मैं हूं और मुझ में तुम हो,

फिर से वो थोड़ा खिल-खिलाई और बोली तो माया रूपी जग में इसका क्या लाभ है फिर मैं भी थोड़ा मुस्कुराया और बोला ये ही तो प्रीत है जहा मोल भाव ना हो,

ये ही तो प्रीत है जहां जग की आस ना हो,
ये ही तो प्रीत हैं जहां हानि लाभ न हो,

ये ही तो प्रीत है ,
ये ही तो मनमीत है।

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