हमसफर

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जब खुशियों की उम्मीद के दामन को छोर दिया था मैंने तब मुझे वो मिला,

जब कांटो भरे रास्तों को रहबर मान लिया था मैंने तब मुझे वो मिला,

जब आसुओं को अपना सबसे अज़ीज़ मान लिया था मैंने मुझे वो मिला,

जब हर अपने के अपनेपन को बैगना मान लिया था तब मुझे वो मिला,

वो मिला जिस से बेरुखी और बैगनेपन की उम्मीद थी पर अनजाने में उसी से सबसे ज्यादा अपनापन मिला,

जब मुझे ना किसी से कोई आशा ना कोई अभिलाषा थी तब मुझे वो मिला,

मुझे मेरा रहबर मिला,
मुझे मेरा हमसफर मिला।

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So, ye kavita maine gulab ke pov se sultan rafiq sahab ke liye likhi hai comment karke batao kaisi aur tag lavleen di halanki unhone ye kavita padh li hogi comments mai par tag Karo 😋 magicallovely

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