'विज्ञान व कला का योग'

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     योग मानवता की प्राचीन पूँजी
संग्रहित किया हुआ बहुमूल्य ख़ज़ाना
शरीर,मन,और आत्मा
तीन तत्वों से बना है मानव
मन शरीर पर नियंत्रण कर ,
अंतरात्मा की आवाज़ को पहचानता
शारीरिक,मानसिक,और आध्यात्मिक
तीन अवस्थाओं का संतुलन योग कहलाता

विज्ञान और एकाग्रता में गहरा सम्बन्ध
एकाग्रता में ही इसके
चिंतन,चेतन,और
चित्त में अनेकों रहस्य प्रकट होते
बिन एकाग्रता के विज्ञान के शोध
संभव नहीं हो सकते
विज्ञान धारणा में सिमटता
एकाग्रता जिसमें प्रमुख होती है
यह धारणा क्या है?
शरीर के बाहर या भीतर कहीं भी किसी एक में
चित्त(मन) का ठहरना ' या केन्द्रित करने का प्रयास
वास्तव में  धारणा ' है  लेकिन
विचार व धारणा
'ध्यान ' नहीं है  इसका संबंध बाहरी दुनिया से होता है
इससे आगे की पथ ध्यान कहलाता
विज्ञान और वैज्ञानिकता की पहुँच से बहुत दूर है यह

बड़ी अद्भुत है ध्यान महिमा
क्रिया नहीं यह वह अवस्था है
विचार शून्य होकर जब चेतना
एकाकी हो जाती
ध्यान का पथ रचनात्मकता एवं मौलिकता है
अपने से है,बाहर से नहीं
जब गहरी अनुभूति ध्यान के साथ होती है
अनायास ही ध्यान सध जाता
गहरे कलाकार यह ध्यान साध लेते
तभी तो उनके काव्य व चित्रों मे
रहस्यदर्शियों की सी झलक मिलती है
कितनी ही बार वह कुछ ऐसा कह देता,
गद्य में जिसे कभी नहीं कहा जा सकता,
कलाकृतियाँ झलक ऐसी दे जाती
अभिव्यक्त जिन्हें किसी भी ढंग से
किया नहीं जा सकता
ध्यान हमारे मन के,हमारे जीवन के
रंग बदल देता है
हमारी प्रतिभा,हमारी कुशलता,हमारी सोच
ये सब मन की ही तो बातें हैं
ध्यान मन को कल्पतरु में, कल्पवृक्ष में परिवर्तित कर देता
सामर्थ्य वान इतना बना देता
जो सोचते,जो विचार करते
घटित वह होने लगता

ध्यान प्रक्रिया मन में
चुम्बकत्व को जन्म देती है
चुम्बक से हम क्या खींच
रहे हैं
किन तत्वों को आकर्षित कर रहे हैं
आध्यात्म के सारे उपचार,समूची तपश्चर्या,सारी प्रक्रियाएँ
सारी इसी के लिए ही तो है -कि हम
अपने विचार और भावनाओं को सशक्त बना ,असाधारण चुम्बकत्व पैदा करें जिससे प्रकृति से
सकारात्मकता,प्रकृति से सामर्थ्य,प्रकृति से देवत्व,प्रकृति से स्वयं ईद खिंचा आए
यही तो ध्यान है

योगी की स्थिति कलाकार और वैज्ञानिक से आगे की होती
वैज्ञानिक -बाहर,कलाकार-अंदर, परन्तु
योगी -अंदर और बाहर दोनों धुर्वो के बीच समान रूप से रह सकता यही नहीं
इन दोनों के पार भी उसकी
गति और उपस्थिति होती इसे समाधि कहते है
जिसमें योगी अवस्थित होता,जहाँ ध्यान गाढ़ा और गहरा हो जाता ।
इसीलिए तो
वैज्ञानिक की अवस्था धारणा (एकाग्रता)
कलाकार की अवस्था-ध्यान और
योगी की स्थिति को-समाधि कहते हैं।

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