मिठी ठिठुरन

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चिमनी की सह लेने वाली दहकती आग की रौशनी में अपने पसंदीदा उपन्यास के विंटेज पन्नों को पलटते, दिल हुआ मौसम की सनसनाती हवा बदन को ठिठुरन दे दे। इस ख्याल को अपने बैठे सोफे से सामने की खुली खिड़की तक नापते, हथेली घुटनो पर रख मैं खड़ी हो गई।अपने शौल को अपनी पीठ पर डाले खिड़की खोलने के प्रयोजन से आगे बढ़ी। खिड़की खोलते ही मुँह पे छपाक करने वाली हवा ने जोर से मारा और ठंड की बर्फीली शीतलहर ने ओस की दो चार बुंदे मेरे जुल्फो पर छटकाई, वायु वेग से मेरी लटे पीछे को जा सरकी।अपने गुथे चोटियो को सहलाते मैं ठंड के नज़ारे का आनंद ले ही रही थी तभी सड़क के उस किनारे से साइकिल की घंटी ये संदेशा लाती है कि मन को प्रफुल्लित कर देने वाली ये ठंड सबके लिये समानार्थी नहीं।
उस घंटी वाले बूढ़े व्यक्ति ने अपने साइकिल के पीछे वाली सीट पर रखे टोकरी में से एक झोरी निकाला और सामने वाले घर पे दस्तक देते है। जवाब में ना मिलने पर एक फटी हुई मुस्कान लेके बाहर पड़े लम्बेदार सोफ़े जैसी दिखने वाली लोहे की कुर्सी पर बैठ सुसताने लगे। कुछ देर विचार करने के बाद मुझे उनके बगल में रखी झोरी के फटे हिस्से में से गाजर की झलक दिखी और फिर सारी व्यथा समझ आ गई। फटे घीसे आधे कंबल को पीठ पर डाले वो बूढ़ा बाप घर घर जाके अपनी मेहनत के बदले भूख मिटाने वाले पैसे मांग रहा था। नाखुनो से सख्त हो गए उसके पैरो पर शीतलहर की कहर ढा रही थी,बिन चप्पल के वो पैर ठिठुर के लालिमा धर चुके थे। मीठी ठिठुरन देने वाली ये ठंड अचानक मुझे तीखी लगने लगी। सच कहते हैं भूख और मौसम उम्र नहीं देखती।

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⏰ पिछला अद्यतन: Dec 04, 2023 ⏰

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