धूसर साड़ी

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कमरे में धुंधलका सा था, शाम की सुनहरी किरणें अब सिर हार चुकी थीं। जितिन अपनी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा था, उलझन भरे चेहरे के साथ वो दो साड़ियों को घूर रहा था। एक चटक पीली, गहरी हंसी की तरह चमकती हुई, और दूसरी लाल, जुनून की लौ जैसी तड़कती हुई।

पीली साड़ी, हल्की-फुल्की सी थी, हवा में लहराती तो बतखनी के पंख नजर आते। सोनी को इसमें, वो एक खिली हुई कली दिखती थी, जिंदगी को हंसते हुए गले लगाती हुई। पर रेड साड़ी, वो अलग ही रंग जमाती थी। वो जैसे गुलाब का खिलन होता, सुगंध से कमरे को भर देता। उस साड़ी में सोनी एक दहकती शमा नजर आती, जिसमें जुनून और जिद की लपटें उठतीं।

दोनों साड़ियों को लेकर जितिन कमरे में टहलने लगा। अचानक उसकी नजर अलमारी के कोने पर रखी धूसर रंग की साड़ी पर पड़ी। वो एक महीन, रेशमी धुआं थी, सितारों की चमक लिए। उसी पल जितिन के मन में तय हुआ। उसने दोनों चमकदार साड़ियों को बिस्तर पर रख दिया और धूसर को बाहर निकाला।

कमरे की हवा में एक अलग ही तनाव घुलने लगा था। जितिन की सांसें कुछ तेज हो गई थीं। उसने धीरे से अपनी टी-शर्ट उतारी। उसकी नजर सामने अलमारी में टिकी, जहां धूसर रंग का, नाजुक सा ब्रा रखा हुआ था। उसे हाथ में लेते हुए उसे लगा जैसे वो किसी अमूल्य रत्न को छू रहा हो।

ब्रा को पहनते ही, उसके शरीर की बनावट और भी उभर कर सामने आई। वो कर्व्स, जो आमतौर पर कपड़ों के नीचे छिपे रहते थे, अब बेधड़क सामने थे। जितिन ने खुद को आईने में देखा, उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। ये वही शरीर था, जिसे उसने कभी ठीक से नहीं देखा था। वो हमेशा सोचता था कि वो कमजोर है, अपूर्ण है, लेकिन अब वो ब्रा में, साड़ी के ब्लाउज की नर्म पकड़ में, वो खुद को खूबसूरत महसूस कर रहा था।

ब्लाउज को पहनते हुए, उसके हाथ थोड़े कांप रहे थे। ब्लाउज का कपड़ा उसकी त्वचा से सट गया, उसके उभारों को और भी निखारता हुआ। उसने ब्लाउज की फीते को कस कर बांधा, जिससे उसकी छाती और भी उभर कर सामने आई। आईने में वो खुद को देखता रहा, जैसे किसी खूबसूरत पहेली को सुलझा रहा हो।

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