धूसर साड़ी -2

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हवा अब एक सुकून भरे झोंके में कमरे में बहती थी। जितिन ने दरवाजा थोड़ा सा खोला और झांककर देखा। बाहर का गलियारा सुनसान पड़ा था, सिर्फ दीवार पर टंगे एक घंटे की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। वो धीरे से बाहर निकला, हर कदम थोड़ा सांप की चाल जैसा, अभी भी इस नए रूप में पूरी तरह सहज नहीं।

लेकिन जैसे ही वो लिविंग रूम में दाखिल हुआ, उसकी सांस अटक गई। सोफे पर सोनिया बैठी थी, एक किताब हाथ में लिए हुए, लेकिन उसकी नजरें टेलीविजन पर टिकी थीं। टीवी पर फैशन वीक का लाइव ट्रांसमिशन चल रहा था, रैंप पर मॉडल अलग-अलग रंगों की साड़ियों में घूम रही थीं।

सोनिया ने जितिन को आते नहीं देखा। वो इसी सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, जहां रंग, रेशम और आत्मविश्वास एक साथ हवा में लहरा रहे थे। एक पल तो जितिन को लगा पीछे लौट जाए, उस सुरक्षित कमरे में जहां वो सिर्फ खुद था।

लेकिन नहीं, ये वही कमरा था, वही पत्नी थी, और अब वही जितिन भी। उसने एक गहरी सांस ली और आगे बढ़ा। सोनिया के नाम को पुकारा भी नहीं, बस उसके बगल में धीरे से सोफे पर बैठ गया।

सोनिया चौंकी, किताब बिस्तर पर फेंक दी और उसकी आंखें जितिन पर टिक गईं। एक पल के लिए तो उन आंखों में सिर्फ हैरानी थी, फिर धीरे-धीरे उस हैरानी ने दूसरे भावों को जगह दी। आश्चर्य, जिज्ञासा, और धीरे-धीरे, एक मुस्कान।

उस मुस्कान में कोई सवाल नहीं था, कोई विरोध नहीं था। बस स्वीकृति थी, प्यार था। सोनिया धीरे से उठी और जितिन के ठीक बगल में बैठ गई, उसका हाथ अपने हाथ में थाम लिया। उसकी उंगलियां धूसर साड़ी के रेशम पर सहलायीं, जैसे इस नए अहसास को छूना चाहती हों।

उस पल कमरे में कोई बात नहीं हुई, सिर्फ आंखों का एक संवाद चल रहा था। सोनिया के चेहरे पर ये लिखा था - "तुम जो भी हो, तुम मेरे हो।" और जितिन के दिल में यही गूंज रहा था - "मैं हूँ, और तुमने मुझे स्वीकार कर लिया।"

वो इसी तरह घंटों बैठे रहे, टीवी पर चलता फैशन वीक उनकी कहानी का साउंडट्रैक बन गया। रैंप पर मॉडल्स ने अनेकों रंग पहने, लेकिन जितिन के लिए असली खूबसूरती सोनिया की स्वीकृति भरी आंखों में थी।

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