सारी की शर्तः एपिसोड 1: द लॉन्ग लॉस सरस्वती

170 0 0
                                    

जितिन, घरेलू क्रिकेट का धुरंधर, टीवी पर मैच देख रहा था. बगल में बैठी श्वेता, नटखट हंसी से हवा में तीर चला रही थी.

"तुम तो मैच में इतने डूबे हो, जितना शायद मैं तुममें कभी नहीं डूबी," श्वेता ने चुटकी ली.

"अरे पगली! शादी के छह साल में भी, तुम्हारा प्यार उतना ही ताज़ा है, जितना ये कमेंट्री 'बेहतरीन स्ट्रोक' चिल्ला रही है," जितिन ने मीठा झांसा बिछाया.

"हो सकता है," श्वेता ने पलकें झपकाईं, "लेकिन क्या ये बेहतरीन स्ट्रोक तुम्हारी जिंदगी में एक और 'बेहतरीन' ला सकता है?"

"जैसे?" जितिन का ध्यान टेलीविजन से हट गया.

"ये जो महाराजाजी का पुश्तैनी महल है, जिसके खंडहरों में वो भूतनी रहती है?" श्वेता ने रहस्यमयी अंदाज में कहा.

"हां, सुना है," जितिन ने नाक सिकोरी. "पर वो तो सिर्फ कहानी है."

"कहानी जिसके गेट्स लॉक नहीं, और खिड़कियां हवा में खुद खुलती बंद होती हैं!" श्वेता ने जोर दिया. "मुझे यकीन है, वहां छिपा है कोई खजाना!"

जितिन हंसा. "तो तुम कह रही हो, मैं उस भूतनी से दोस्ती करूं, ताकि वो मुझे खज़ाना दे?"

"दोस्ती नहीं," श्वेता का चेहरा चमक उठा. "तुम्हें एक शर्त पूरी करनी है. अगर तुम वहां तीन दिन, साड़ी पहनकर, औरत बनकर रह लेते हो, तो खज़ाना तुम्हारा!"

जितिन के होश उड़ गए. "लेकिन मैं... मैं औरत बनूंगा? साड़ी पहनूंगा? भूतनी से दोस्ती? श्वेता, ये पागलपन है!"

"पागलपन या शानदार एडवेंचर?" श्वेता ने नटखट हंसी से उसका मुंह बंद कर दिया. "डरो मत, मैं तुम्हें पूरी ट्रेनिंग दूंगी. तुम्हें बस इतना करना है, औरत बनना सीखना है. क्या तुम तैयार हो?"

जितिन का दिमाग घूम रहा था. एक तरफ ख़ौफ़नाक खंडहर, दूसरी तरफ अनकहा खज़ाना और पत्नी की शर्त. एक हंसी फूट पड़ी उसके मुंह से.

Feminine Where stories live. Discover now