रात का गहरा पहर था, मुंबई की सड़कों पर सुनसान सन्नाटा पसरा हुआ था। जितिन, एक नौजवान लड़का, सड़क के किनारे खड़ा होकर बेचैनी से इधर-उधर झांक रहा था। उसके चेहरे पर हल्का मेकअप और होठों पर लाल रंग की लिपस्टिक काबिज़ थी। हरे रंग की डिजाइनर साड़ी उसके नाज़ुक बदन पर लहरा रही थी और कानों में झुमके झिलमिला रहे थे। आज रात उसकी दोस्त सुनीता की बर्थडे पार्टी थी और उसने एक अलग अंदाज में सरप्राइज़ देने का प्लान बनाया था।
लेकिन पार्टी देर तक चलने की वजह से अब जितिन को घर लौटने में देर हो चुकी थी। उसने कैब बुक कर ली थी, जो अभी पाँच मिनट में आने वाली थी। मगर हवा में एक अजीब सी बेचैनी घुल रही थी। शायद देर रात अकेले खड़े होने का अहसास था या फिर अपने ही ट्रांसफॉर्मेशन का। जितिन ने गौर नहीं किया कि उसकी साड़ी और मेकअप उसे एक औरत से ज़्यादा एक धंधेवाली का रूप दे रहे थे।
शहर की सुनसान गलियों में, अकेली खड़ी एक "औरत" के रूप में, जितिन को इस बात का एहसास नहीं था कि वह कितना असुरक्षित था।
जितिन का दिल जोर से धड़कने लगा। डरा हुआ होने के बावजूद उसने हवासा नहीं खोया। उसने धीरे से पलटकर उस आदमी की तरफ देखा। आदमी की आंखों में एक घिनौनापन झलक रहा था, जो जितिन की रीढ़ की हड्डी तक ठंड पहुंचा रहा था।
"तुम मर्द या औरत?" आदमी ने दोबारा पूछा, उसकी आवाज में एक खुरदरापन था, जो खतरे की घंटी बजा रहा था।
जितिन की रोंगटे खड़ी हो गईं। उस आदमी की निगाह में एक अजीब सी चमक थी, जो उसे असहज कर रही थी। पहले तो डर ने उसे जकड़ लिया, लेकिन फिर उसने हिम्मत जुटाई और आवाज थोड़ी मोटी करके बोला, "भाई, मैं कोई रंडी नहीं हूं। मैं तो एक पार्टी से लौट रहा हूं।"
आदमी की हंसी में एक कर्कशता थी, जो जितिन के मन को बेचैन कर रही थी। उसने कहा, "अरे, कोई बात नहीं। तू तो जो चाहे बन, लेकिन इतनी खूबसूरत है कि कोई भी सोच सकता है।" उसकी आवाज में एक फूहड़पन था, जो जितिन को घिन आने लगा।
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Feminine
FantasyIt's never too late to learn something new. With the support of a loved one, anything is possible.