शालू कुछ दिन हुए हमारे ही कमरे के बगलवाली रूम रहने आई थी | सावला रंग कसमसाया सा बदन क़मर में साड़ी को इस तरहा से सटके पहना हुआ था कि मानो कभी ओ नीचे उतरे ही नहीं इस तरहा साड़ी पहनना मुझें भेहद पसंद आया |
पति सरकारी दफ्तर में कही पे काम करता था शायद , उसे यहां आए हुये लगभग एक माह गुजर चुका था | मैंने अभीतक उसे देखा नहीं आज इतने दिनोंबाद उसका दर्शन हुआ तो अपने आपको रोख नहीं पाया मन ही मन मे ऊपरवाले को धन्यवाद देते हुए भाभी की नशीली जवानी का मजा लेते हूए कुछ पल उसे देखता रहा | उसके रहन सहन से पता चला कि शालू भाबी शहर से तो नहीं हैं , तो शालू भाभी गांव की गोरी थी उसे दो बच्चे थे | एक लड़का और एक लड़की दोनों ही बड़े थे लगभग दस साल के भाबी की उमर चालीस पैतीस साल होगी शरीर एकदम गोल मटोल औऱ गदराया किसम का था |
पहिलीबार देखनेवाले की आँखे यू नम हो जाती थीं उसके बाद ओ घर के भीतर चली गयी | मुझें भी ऑफ़िस के लिए निकलना था तो मैं भी बाथरूम जाकर नहाने ने की तैयारी करने चला गया आज काफ़ी ख़ुश मिजाज फील कर पाया पता नहीं पर मुझें शालू भा गयीं उसे देखने के बाद मेरे अंदर कुछ छुपी ऊर्जाओ का स्रोत फिरसे एक्टिव हो गया मेरी शादी हूए भी दस साल हो गए थे बीवी तो वैसे भी नसीब से सुंदर और सुशील मिली घर गृहस्थी वैसे ठीक चली रही थी मैरिड लाइफ भी ठीकठाक थी फिर भी शालू की और बढ़ता खिंचाव समज नहीं आया | एक पल तो लगा कि मैं फिरसे जवा हो गया हूं | शालू के बारे में सोचते हुए नहाया मन ही मन सोचा क्यों किसी दिन क़िसमत खुल जाए और शालू भाबी के साथ इसी बाथरूम में नहाने का मौका मिल जाये तो क्या बात होगी बस सोचने से ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए इतने बाहर से आवाज आई क्या आपका नहाना हो गया हैं ? जल्दी कीजिए मैने नास्ता लगा दिया हैं | कावेरी मेरी धर्मपत्नी बहौत प्यारी हैं , मुझसे बहुत प्यार करती है , पर अब घर गृहस्थी में इतनी मशगूल हो गयी खुद को ही भूल गयीं | नास्ता करते शालू मेरे नजरों के सामने से हटने का नाम नहीं उसकी सावली सूरत प्यारी सी मुस्कान आँखों के सामने मंडरा रहीं थीं | अब सोचकर ही बेक़ाबू हो रहा मैं जल्दीजल्दी नास्ता करके घर से बाहर निकल पड़ा जाते हुए घरकी और देखा पर दरवाजे पे पर्दा था | अंदर कुछ ठीकसे दिखाई नहीं पड़ा मुझें भी देरी हो रही समय की पाबंदी बस्टेण्ड चला आया |
आज पूरा दिन किसी काम मे मेरा मन लग नहीं पाया दिल और दिमागमें ख़ामोशी हील खामोशी थीं दफ़्तर से कब घर जाता हूं | ऐसा हो गया दिल ही दिल मे एक नया रिश्ता पलने लगा था | शाम को घर के लिए निकल पड़ा बस किसी तरहा शालू नज़र आ जाए मन ही मन सोचता हुआ कब घर आया पता नहीं | ग्यालरी का नजारा कुछ मेरे सोच से बेहतरीन था | कावेरी और शालू दोनों कुछ बात कर रहे नज़र आए आज दिल को तस्सली हो गयी जिसे देखने की चाहत सवेरेसे दिल मे बसी हुई थीं आखिकार उससे मुलाकात हो ही गयी |कुछही दिनों में कावेरी और शालू एक अच्छी दोस्त बन गए अब शालू का हमारे घर आना जाना रोज का हो गया | जब भी शालू घर आती तो मुझमें काफ़ी प्रसन्नता रहती थीं थोड़ी बहोत हमारी भी जान पहचान होने के कारण यूँही आते जाते एक दुसरे को स्माइल देना चलने लगा कभी कभी तो ऐसा भी लगता था के हम एक दूसरे को बहौत पहले से जानते हैं, या फिर इससे पहले हम मिल चुके है , अचानक से अपनापण महकने लग जाता .
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पड़ोसन
عاطفيةरोमान्स , इरॉटिका _____ DISCLAIMER The following novel contains adult content suitable for readers above 18 years . It contains cheating , adultery , cuckold , humiliation and extramarital romance sex . If this kind of content is not for you...