सर्ग १(आलस का आडंबर)

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सब जाग रहें तू सोता रह,
पल पल अपना तू खोता रह,
वह समय भी जल्द ही आएगा,
जब तू खुद पर पछताएगा,
जब आलस ने तुझको घेरा था,
कलयुग ने डाला डेरा था,
तू बुद्धिहीन गुणहीन हुआ,
जैसे रण मे बलहीन हुआ।

देने को अब क्या बाकी था,
जो समय रत्न था छीन सा गया।

जो कल तक तेरा गौरव था,
तेरे शिर का जो सौरभ था,
वो मिट सा गया, वो लुट सा गया।
अब नही तुझी से दीन कोई,
न तुझसे है जो हीन कोई,
अब सुन मेरी तू पुकार जरा,
अब तो हो जा तू तो खड़ा।

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