नया रूप: क्या होगा आगे?

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होटल के कमरे में
जितिन ने एक गहरी सांस ली और अपनी खाली सूटकेस को बंद किया। हैदराबाद का यह दौरा उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। वह जिस काम के लिए आया था, वह तो हुआ नहीं, ऊपर से दो दिन इस बेकार से होटल के कमरे में फंसे रहना पड़ा। उसने घड़ी पर नज़र डाली – रात के दस बज रहे थे।
"अभी बस स्टैंड पहुँचूंगा तो ग्यारह बज जाएंगे। पता नहीं बस मिलेगी भी या नहीं," जितिन ने मन ही मन सोचा।

सुनसान हाईवे पर
होटल से चेकआउट करके जितिन बस स्टैंड पहुँचा तो वहाँ सन्नाटा पसरा था। एक-दो लोग इधर-उधर खड़े थे, लेकिन कोई बस का इंतज़ार करता नहीं दिख रहा था। जितिन को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
तभी उसकी नज़र एक खाली बेंच पर पड़ी। उसने अपना सामान वहीं रखा और बेंच पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसके साथ खड़े लोग भी वहाँ से चले गए। अब जितिन वहाँ बिलकुल अकेला था।

श्वेता का फोन
अचानक जितिन का फोन बजा। कॉलर आईडी पर श्वेता का नाम देखकर उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।
"हैलो, श्वेता! मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो?" जितिन ने फोन उठाते ही कहा।
"मैं ठीक हूँ, जितिन। तुम कहाँ हो अभी?" श्वेता ने पूछा।
"बस स्टैंड पर हूँ, लेकिन यहाँ कोई बस नहीं है। पता नहीं कब तक इंतज़ार करना पड़ेगा," जितिन ने उदास स्वर में कहा।
"अच्छा, तो तुम वहाँ अकेले हो?" श्वेता ने शरारती लहजे में पूछा।
"हाँ, बिलकुल अकेला हूँ," जितिन ने जवाब दिया।
"तो फिर क्या बात है? मौका है तुम्हारे पास!" श्वेता ने हँसते हुए कहा।
"मौका? किस बात का मौका?" जितिन कुछ समझ नहीं पाया।

श्वेता का आइडिया
"अरे, वहाँ आस-पास कोई है क्या?" श्वेता ने पूछा।
जितिन ने चारों ओर देखा। वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था।
"नहीं, यहाँ कोई नहीं है," जितिन ने जवाब दिया।
"तो फिर अपनी बैग में से वो साड़ी, ब्लाउज, ब्रा, पैंटी और पेटीकोट निकालो, जो तुम औरत बनने के लिए ले गए थे। और चेंज कर लो!" श्वेता ने अपनी बात पूरी की।
श्वेता की बात सुनकर जितिन ज़ोर से हँस पड़ा।
"आइडिया तो अच्छा है, लेकिन अगर कोई आ गया या बस आ गई तो?" जितिन ने अपनी चिंता ज़ाहिर की।
"अरे, मैंने बस का टाइम टेबल देखा है। बस अभी डेढ़ घंटा लेट है। तब तक तुम अपना ट्रांसफॉर्मेशन कर लो," श्वेता ने कहा।
"ठीक है, मैं जल्दी से चेंज कर लेता हूँ। थैंक्स डियर," जितिन ने कहा और फोन रख दिया।

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⏰ Last updated: Jul 13 ⏰

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