'ज़िंदगी की किताब '

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लिखते-लिखते कहानी कलम रुक गई

दास्ताँ कहते-कहते जुवाँ रुक गई
महकी-महकी फ़िज़ा में महक थी मगर
चलते-चलते अचानक हवा रुक गई ।

ज़िंदगी की किताब लम्बी है ,कुछ वर्क भी उल्टे सीधे है
कुछ मेरी बातें कहते हैं ,कुछ उनकी बातें कहते है

कुछ पर लिखे सितम उनके ,कुछ पर लिखे करम उनके
कुछ शब्द है उनकी बातों के ,कुछ भाव मेरे कहते हैं

कुछ भावनाएँ उनकी है ,कुछ मेरे राज भी कहते हैं
सफ़र यह है लम्बा बहुत,हर रोज़ वर्क जुड़ता रहता है

यह सफ़र है लम्बा जीवन का,जाने किस मोड़ पर आ जाए
लिखते-लिखते इस पुस्तक को,कब ख़त्म रोशनी हो जाए।

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