आज कुजीपुर जाने वाली बस खचाखच भरी थी समझ नहीं आ रहा था बस में चढ़े कैसे क्योंकि वहां पैर रखने तक को जगह न थी
डर था कहीं भीड़भाड़ में कोई भेड़िया मेरे अंग न नोच ले फिर एकाएक याद आया मै तो लड़का हूँ
दिमाग में यही कशमकश चल ही रही थी कि अमन ने जोर से जैसे तैसे मुझे खींचा और हमदोनो बस में किसी तरह सवार होकर कुजीपुर कि और निकल गए
कुजीपुर कि सड़के आज भी उतनी हीं गंदी है जितनी 12 साल पहले थी फरक बस इतना है कि अब सड़क के किनारों में हगते हुए छोटे छोटे बच्चों की संख्या कम हो गई है
मोदी जी की स्वच्छ भारत मिशन ने कमाल कर दिया है यही सब सोचते सोचते मेरी आंख लग गई और मैं सोने ही वाला था कि किसी ने मेरे पेट में अपनी कोहनी घुसा दी मेरी आँखें खुल गई देखा तो एक अधेड़ उम्र की महिला अपने दोनों कांखों में बच्चे दबाए मेरे सामने खड़ी है मै समझ गया कोहनी इसने तो नहीं मारी होगी मैने नजर फेरी तो एक जवान दिखने वाली बुढ़िया मुझे डांट रही थी मैने उसकी डांट को दिल से नहीं लगाया क्योंकि उसके आधे डांट तो उसके दांत के फांक से ही निकल जा रहे थे पर इतना जरूर समझ आया कि वो मुझे इस औरत को सीट देने के लिए कह रही है .
मै सोच ही रहा था कि सीट दु या न दु की तभी एक और कोहनी लगी मै सहसा मुड़ा और देखा एक 16 ,17 साल का लड़का था जिसे देख कर लगता था इसके गालों में किसी ने गरम गरम iron लगा दिया है उसके टांग मुश्किल से उसका भर उठा प रहे थे दूसरी तरफ वो महिला जिसके मोटे टांगों ने पहले से 2 वजन उठाए थे इतनी सक्षम थी कि मुझे भी आराम से लाद ले
मै समझ चुका था ये दोनों को मेरी सीट चाहिए पर मैं यह फैसला नहीं कर पा रहा था कि सीट दिया किसे जाए ?
लड़के को देता तो मै स्त्री विरोधी समझा जाता और औरत को दे देता तो .. उस लड़के के दुर्बल टांगे मुझे चैन से सोने नहीं देता ... मैने खुदको ऐसी धर्म संकट में कभी नहीं पाया था
इन दोनों पर मैने खूब विचार करके एक तीसरा रास्ता निकाला । बेशर्मी का
मैने दोनों तरफ की बातों को नजरअंदाज कर दिया और अपना कोहनी भी तैयार कर लिया था कि अगर तीसरी कोहनी लगी तो कोहनी का बदला कोहनी से लिया जाएगा
जिसका परिणाम यह हुआ कि मेरे बगल में बैठी जवान दिखने वाली बुढ़िया पूरे रास्ते मुझे आंखों से श्राप देते आई थी
कुजीपुर चौक आते ही बस अचानक से झटके के साथ रुकी सामने खड़ी महिला के एक कांख से उसका बेटा मेरी गोद में आ गिरा । उस बच्चे ने हरा शर्ट पहना था जो काफी देर से अपनी मां के कांख में दबे रहने के कारण काले रंग का हो चुका था उसमें से सख्त बदबू भी आ रही थी .. महिला ने झट से अपना बच्चा उठाया और फिर कांख में दबा के बस से उतर गई
हमारा भी ठिकाना आ गया था हम भी उतर गए और बुढ़िया ने मुझे आखिरी बार श्राप देती निगाहों से घूरा.. सामने मुझे लेने के लिए मामा मामी और उनका पूरा परिवार इकठ्ठा था
मैने बस से उतरते ही मामा जी के पैर छुए ये सोचकर कि सब मेरे संस्कारों की तारीफ करेंगे पर उल्टा सब हंसने लगे मामा ने मेरे पैर छुए और बताया भगिना को मामा का पैर नहीं छूना चाहिए क्योंकि भगिना तो पूज्य होते है हमारे यहां..पर मैं ये बात कैसे मान लूं बचपन में मामा से पीटे जाने का निशान आज भी मेरी पीठ पर है
अमन मेरे चाचा का लड़का है जो मेरे साथ पता नहीं किस खुशी में आ गया था