आज भी इंतजार है

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जैसा कि हम सभी जनते है, जगह जगह हिंसा और साम्प्रदायिक दंगो के तत्पशचात भारत क विभाजन हुआ । इस विभाजन से हो सकता है कुछ लोगो को ख़ुशी हुई होगी जो भारत में शांति और खुशहाली चाहते थे । और साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ थे । लेकिन इस विभाजन में ऐसे लोगो की भी कमी नहीं थी जिनका इस विभाजन में सब कुछ बर्बाद हो गया था । अखंड भारत का विभाजन बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और क्षतिपूर्ण था । इस दुर्भाग्य के शिकार एक ऐसे इंसान से मेरी मुलाकात हुई जिसका इस विभाजन ने सब कुछ छीन लिया था । वे भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट चुके थे । जब उनसे इस विभाजन का जिक्र करो तो उनके दिल का दर्द उनकी आँखों से आंसुओ के रूप में छलक पड़ता है । वे इस समय 80 वर्ष के है, जब विभाजन हुआ था तब उनकी उम्र 16 वर्ष थी । मै उनकी कहानी उन्ही की जुबानी सुनाता हूँ।
मेरा नाम प्रेमनारायण है । मेरा जन्म भारत के एक ऐसे कस्बे में हुआ था जहाँ हिन्दू और मुसलमानों के घर एक दूसरे के के पड़ोस में बने थे । मेरी माँ मुझे जन्म देने के कुछ दिन बाद ही चल बसी । मेरे पड़ोस में हमीदा नाम की विधवा मुस्लिम औरत रहती थी। उसकी एक दूध पीती बच्ची भी थी । उस बच्ची और मेरे दुर्भाग्य में फर्क सिर्फ इतना था की मेरे पैदा होने के बाद मेरी माँ नहीं रही और उसके पैदा होने के बाद उसका बाप नहीं रहा । जब उस औरत ने मुझ नवजात को बिना माँ के बिलखते देखा तो उससे मेरा दर्द देखा नहीं गया । वह मुझे भी अपना दूध पिलाने लगी । वह अपनी बच्ची और मुझे साथ साथ दूध पिलाती थी । मेरा बाप भी शायद उस औरत के इस नेक काम से खुस था । सो वह कुछ नहीं बोलता था । अब वह औरत मुझे अपने घर पे ही रखने लगी । पडोसी थे तो कोई दिक्कत नहीं थी। कुछ दिनों बाद मेरा बाप दूसरी पत्नी ले आया । तो उस औरत ने मुझे मेरे घर पे ही रख दिया यह सोचकर की शायद मेरा बाप मेरी देखभाल के लिए ही दूसरी पत्नी ले आया है । लेकिन देखभाल तो दूर की बात मेरी सौतेली माँ ने मुझे छुआ तक नहीं । मेरी यह दशा देखकर उस औरत ने फिर से में देखभाल करने लगीं । उसके बाद मेरा बाप मेरी सौतेली माँ के साथ कहीं जाने लगा । और मुझे उस औरत के पास यह बोलकर छोड़ गया की हम कुछ दिनों में लौटेंगे इसलिए तब तक आप मेरे बेटे का देखभाल करते रहिएगा । यह आपको पहचानता भी है इसलिए आपके पास रह सकता है । पहले तो उस औरत को हैरानी हुई की कोई बाप अपने मासूम बच्चे को पत्नी के होते हुए भी दूसरे के पास छोड़कर कैसे जा सकता है । फिर उसने सोचा मेरी सौतेली माँ मेरे लिए खतरा है ,क्योंकि वह मेरी सौतेली माँ के रंग ढंग पहले ही देख चुकी थी । मेरी सुरक्षा हेतु उसने मुझे अपने पास ही रखना उचित समझा । सो उसने मेरे बाप को कहा ठीक है जब मन करे तब आ जाना लेने । उसके बाद वह मुझे छोड़कर चला गया । बाद में मालूम पड़ा की वह मेरी सौतेली माँ के मायके में ही घर जमाई बनकर रहने लगा है । मेरी सौतेली माँ ने उस पर पता नहीं ऐसा क्या जादू किया था की वह स्त्री मोह के आगे पुत्र मोह भूल गया और फिर वह मुझसे कभी मिलने नहीं आया।
बहरहाल मै उस नेक स्त्री के यहाँ ही पलने बढ़ने लगा। चूँकि मै एक हिन्दू बच्चा था । इसलिए उनके बिरादरी के कुछ लोगो उनके द्वारा मेरा पालन पोषण करना अच्छा नहीं लग रहा था । तब उस औरत ने मेरी सुरक्षा हेतु सबको यही बोलती थी की बच्चे कच्ची मिटटी के घड़े के समान होते है उन्हें धर्म जाति जैसी चीज के बारे में कुछ पता नहीं होता , उन्हें हम जैसी शिक्षा देंगे वे वैसा ही बनेंगे । मेरे साथ उस स्त्री की बेटी सोफिया भी बड़ी हो रही थी। जब हम बड़े हुए तो हम दोनों भाई बहिन उसे अम्मीजान बुलाते थे। क्यूंकि मै अम्मीजान को ही अपनी जन्म देने वाली माँ समझता था । असलियत तो हमे अम्मीजान ने बाद में बताई थी। इस प्रकार हम दोनों भाई बहन साथ में खेलते, और साथ में मदरसे भी जाते थे । कुछ दिनों बाद सोफिया का मदरसे जाना बंद करवा दिया गया । उसकी तालीम यह बोलकर छुडवा दी गयी की लडकियों की की पढाई अक्षर ज्ञान तक ही सीमित होनी चाहिए । बाकी तो उन्हें घर का कामकाज ही सम्हालना होता है । इसलिए उन्हें इसके बदले घर के कामकाज सिखने चाहिए । घर की आर्थिक स्थित बहुत ख़राब थी इसीलिए मैंने भी पढाई छोड़ ही दी और अम्मीजान के साथ काम में हाथ बटाने लगा । जब हम भाई बहिन किशोरावस्था में पहुंचे तो मेरी अम्मीजान को सोफिया की शादी की चिंता सताने लगी । लेकिन घर में कौड़ी भी नहीं थी इसलिए शादी कैसे होती । यह सोचकर मैंने अम्मीजान से कहा की अम्मीजान मै अब बड़ा हो गया हूँ । मै शहर जाकर कुछ कमाई करूँगा जिससे सोफिया की शादी के लिए पैसे जुटा सकू । लेकिन अम्मीजान ने यह सुनते ही मुझे मना कर दिया और कहा की तू हमसे दूर कही नहीं जायेगा । अगर पैसे ही कमाने है तो हम सब मिलकर यही पर कही कोई काम करेंगे । माना थोड़े पैसे कम मिलेंगे लेकिन हम सब साथ तो रहेंगे।
मैंने अम्मीजान को बहुत समझाया । तब जाकर अम्मीजान कही मुझे शहर भेजने को तैयार हुई । उसने मुझे नम आँखों से ढेर सारा प्यार देकर विदा किया । और कहा की तुम कुछ महीने शहर में रहने के बाद ही वापस आ जाना । और ख़त लिखकर अपना हाल बताते रहना ।
उसके बाद मै शहर चला गया । वहां पहुंचकर मै अपना पहला ख़त भी नहीं लिख पाया था की, यह खबर फैली की भारत का विभाजन हो रहा है । भारत के सारे मुसलमान भारत छोड़कर पकिस्तान जा रहे हैं । यह खबर सुनकर मेरे अन्दर डर समाने लगा की कही अम्मीजान भी न चले जाये । लेकिन वे
मुझे छोड़कर कैसे जा सकती है। पर मेरा मन था की मान नहीं रहा था ।
मै अम्मीजान से मिलने शहर छोड़कर गाँव चल दिया। गाँव पहुंचकर देखा की गाँव से सारे मुसलमान रवना हो गए है । घर पंहुचा तो घर का नजारा देख कर मै गश खाने लगा । क्यूंकि अम्मीजान और सोफिया कोई नहीं था घर पर लगता था की वे लोग भी चली गयी थी । यह देखकर मै वही बैठकर मासूम बच्चे की तरह रोने लगा । और सोचने लगा की क्या यही प्यार था अम्मीजान का जो मुझे छोड़कर चली गयीं । इतने में ही गाँव के एक अंकल आये और उन्होंने मुझे ढाढस बंधाते हुए कहा की बीटा तुम्हारी अम्मीजान तुम्हे छोड़कर ऐसे ही नहीं गयी ।
उनकी बिरादरी के सभी लोग यहाँ से जा रहे थे तो उन लोगो ने उन्हे भी जबरदस्ती ले गए। तुम्हारी अम्मीजान के भाई और परिवार के लोगो ने कहा की तुम अकेली यहाँ क्या करोगी । जहाँ हम सब रहेंगे वही तुम भी चलो । लेकिन तुम्हारी अम्मीजान तुम्हारे बिना यहाँ से जाने को राजी नहीं थी । तब उन लोगो ने कहा की हम वहां जाने के बाद तुम्हारे बेटे को ढूंड देंगे । लेकिन वे फिर भी भारत छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी । उन पर बहुत दबाव डाला गया । तब जाकर कही वे जाने को राजी हुई। लेकिन उन लोगो ने तुम्हे ढूंधने के लिए दोबारा यहाँ आने को बोला है । तब तक इन्तजार कर लो ।
लेकिन इन्तजार मेरे बस की बात नहीं थी । फिर भी मैंने एक साल तक अम्मीजान का इंतजार किया। मैंने सोच रखा था की अगर अम्मीजान मुझे लेने आएँगी तो मै उन्हे लेकर भारत में ही कहीं रहूँगा ! लेकिन इतने दिनों कोई नहीं आया । तब मै उन लोगो ढूंढने पाकिस्तान गया । मैंने उन्हें वहां बहुत ढूंढा, पर उन लोगो का वहां कोई अता पता नहीं लगा । इस दौरान मै पाकिस्तान में भारत का जासूस समझकर गिरफ्तार कर लिया गया । वहां की जेल में कई सालो तक बंद रहा । अंत में मुझे न्याय मिला । मै रिहा कर दिया गया । रिहा होने के बाद मैंने फिर से उन लोगो को ढूंढा पर असफलता ही हाथ लगी । और इस तरह से मेरी माँ और बहन हमेशा के लिए मुझसे दूर हो गयी । वे पता नहीं कहाँ और किस हाल में थीं । थक हार कर मै भारत वापस आ गया । और गाँव आकर आज भी मै अपनी माँ और बहन का इन्तजार कर रहा हूँ । अब तो ये इन्तजार सांसो के साथ ही छूटेगा ।
समाप्त

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