" आज आईने में भी दरार देखी हमने,
पता नहीं शीशा टूटा था या 'हम' !!"पसंद' है मुझे.....'उन' लोगों से 'हारना'.....!!
जो मेरे 'हारने' की वजह से.....'पहली' बार 'जीते' हों.....!!हीरो बनने के लिए ज़िगर की ज़रूरत पड़ती હે. ...और जब ज़िगर हो तो भरी बन्दुक का क्या काम...
आज भी हारी हुई बाजी खेलना पसंद है हमे क्योंकी हम तकदीर से ज्यादा खुद पे भरोसा करते है.
जो 'दोगे' वहीं लौट कर आयेगा, चाहे वो 'इज्जत' हो या 'धोखा'..
इंसान को अपनी औकात भूलने की बीमारी है और कुदरत के पास उसे याद दिलाने की अचूक दवा...
ए मुसीबत जरा सोच के आन मेरे करीब कही मेरी माँ की दुवा तेरे लिए मुसीबत ना बन जाये
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यों है;
इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है;दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे;
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यों है;तन्हाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ो;
ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यों है;हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की;
वो ज़ूद-ए-पशेमान, परेशान-सा क्यों है;क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें;
आईना हमें देख के हैरान-सा क्यों है।""प्यास तो मर कर भी नहीं बुझती ज़माने की, मुर्दे भी जाते जाते गंगाजल का घूँट मांगते है""