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दो महिने बाद हमारी रिजल्ट भी आ गयी, और हम सभी अच्छे नम्बर से पास हो गये थे। हमारा स्कूल का सफर अब खत्म हो चला था, काँलेज का सफर अब शुरु होने वाला था। सब अपने घर से दुर अलग-अलग जगहों पर पढने के लिए जाने कि तैयारी करने लगे। मुझे भी अपने घर से दुर दरभंगा मे रहकर पढने कि हिदायत दी गयी थी। स्कूल के बाद से मै चाँदनी से एक बार भी नही मिला था, न हमारी कोई बात हुई थी। मै उनसे मिलना चाहता था, उसे ये बताना चाहता था की अब हम बराबर नही मिल पायेंगे, लेकिन हम उसे बहुत याद करेगें। क्यो न हम कोई ऐसा समय निकाले कि साल मे एक बार मिल पाये। लेकिन मै ये बात चाँदनी को बताता कैसे, मै उसके घर न जाने कितने बार गया, हर बार ये सुन के वापस आ जाता कि चाँदनी घर पे नही है। अब हम बस दुआ कर रहे थे की, मेरे जाने से पहले हमारी मुलाकात एक बार हो जायें।
एक दिन मै अपने दरवाजे पे बच्चों के साथ खेल रहा था, तभी मै चाँदनी को अपने घर कि तरफ आते हुये देखा। उसकी आँखे लाल थी, शायद बहुत गुस्से मे थी। उसे देखते ही मेरे चेहरे पे खुशी आ गयी। लेकिन खुशी से ज्यादा मै डर गया, ये सोच के कि अगर घर के किसी ने देख लिया तो धुलाई तो होगी ही उपर से पढाई की भी वाट लग सकती है।
वो साइकिल को पटकते हुये मुझे धक्का देते हुये बोली, कहां थे इतने दिन, तुम्हे मेरी याद भी नही आईं, कैसे हो, मै तुमसे मिलने के लिए बेचैन थी और तुम यहाँ बच्चों के साथ मस्ती कर रहे हो। उसके सवाल मेरे उपर बानो कि तरह बरस रही थी, वो बोली जा रही थी और मै बस सुन रहा था। फिर वो चुप हो गईं और मुस्कुरा के बोली कुछ बोलोगे भी।
मै अच्छा हुँ, और तुम्हारी याद भी बहुत आती है, मै तुमसे मिलने तुम्हारे घर कई बार गया और मुझे हर बार ये बोला जाता की तुम घर पर नही हो, किसी रिश्तेदार के घर गयी हो। वो बोली मै कही नही गयी थी घर मे ही थी। तुम्हारे साथ किसी ने मूवी देखते देख लिया था, फिर पापा को पता चल गया और उस दिन से बाहर निकलना, किसी से मिलना बंद हो गया। अब मै घर मे ही रहती हूँ अकेली। मै सोचने लगा, मतलब उस अंकल ने मेरा डेली मिल्क तो फ्री मे खा लिया। खैर तुम कैसी हो और आगे की पढाई करने कहां जा रही हो, मैनें पुछा। उसने बतायी कि उसकी रिजल्ट भी अच्छी आई है और आगे कि पढाई करने वो अपने भाई के पास दिल्ली जा रही है। लेकिन वो दशहरा मे मिलने आयेगी और साल भर की बाते करेगी। मैने उस कहा अब तुम जाओ, पापा के आने का समय हो गया है। अगर उन्होंने हम दोनों को साथ मे देख लिये तो गलत सेंस करेगें और मुझे डाँट भी पड़ सकती है। लेकिन हम दोनों एक दुसरे से दुर नही जाना चाहते थे। मै चाहता था कि वो मेरे सामने ऐसे ही बोलती रहे और मै सुनता रहूँ। तभी मैनें पापा को आते देखा, मै बहुत डर गया, उसकी साइकिल उसे देते हुये बोला, जल्दी जाओ अब। वो जाना नही चाहती थी, शायद उसकी बाते अधूरी रह गईं थी। एैसा मानो जैसे जो बात कहने आई थी वही न कह पायी हो। मैने उसे ढँका दे जाने को बोला, वो जाने लगी। जब मैने आखरी बार उसे देखा तो उसके आँख मे आँसू थे। वो मुझे ऐसी देखी थी जैसे मैंने उसे रुलाया हो, उसका दिल तोड़ दिया हो, उसके सपने तोड़ दिये हो। ऐसा मानो जैसे मैने उसे अपने घर से ही नही दिल से भी निकाल दिया हो। वो तो चली गईं लेकिन मेरा मन अब बैठ सा गया था। कही मैंने अनजाने मे कोई गलती तो नही कर दी। क्या मै इतना कमजोर था कि एक लड़की जो इतनी हिम्मत कर के, मेरा घर ढूँढी, मेरे घर आई, उसे मै अपने घर वालो से मिलाता। शायद मेरे अंदर भी हिम्मत थी कि मै चाँदनी को गर्व से अपने घरवाले से मिलाता। लेकिन शायद दुनियाँ वालो कि बदनामी का डर, और झूठी शोहरत के वजह से, मेरी वो हिम्मत खो गयी थी। उसके अगले ही दिन मै दरभंगा आ गया था।

खामोश प्यार (वो बचपन वाली लड़की)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें