डॉ. राममनोहर लोहिया का जीवन परिचय
डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को अकबरपुर में पिता श्री हीरालाल, माता श्रीमति चन्दा के घर हुआ था। ढ़ाई वर्ष की आयु में मां का देहान्त हो गया। उन्हें दादी के अलावा सरयूदेई, (परिवार की नाईन) ने पाला। टंडन पाठशाला में चौथी तक पढ़ाई करने के बाद विश्वेश्वरनाथ हाईस्कूल में दाखिल हुये। पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। बम्बई के मरवाड़ी स्कूल में पढ़ाई की। लोकमान्य गंगाधर तिलक की मृत्यु के दिन विद्यालय के लड़कों के साथ 1920 में पहली अगस्त् को हड़ताल की। गांधी जी की पुकार पर 10 वर्ष की आयु में स्कूल त्याग दिया। पिताजी को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आन्दोलन के चलते सजा हुई। 1921 में फैजाबाद किसान आन्दोलन के दौरान जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात हुई। 1924 में प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस के गया अधिवेशन में शामिल हुए। 1925 में मैट्रिक की परीक्षा दी। कक्षा में 61 प्रतिशत नम्बर लाकर प्रथम आये। इंटर की दो वर्ष की पढ़ाई बनारस के काशीविश्वविद्यालय में हुई। कॉलेज के दिनों से ही खद्दर पहनना शुरू कर दिया। 1926 में पिताजी के साथ गौहाटी कांग्रेस अधिवेशन में गये। 1927 में इंटर पास किया तथा आगे की पढ़ाई के लिए कलकता जाकर ताराचंद दत्त स्ट्रीट पर स्थित 'पोद्दार छात्र हास्टल' में रहने लगे। विद्यासागर कॉलेज में दाखिला लिया। अखिल बंग विद्यार्थी परिषद के सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस के न पहुंचने पर उन्होंने सम्मेलन की अध्यक्षता की। 1928 में कलकता में कांगेस अधिवेशन में शामिल हुए। 1928 से अखिल भारतीय विद्यार्थी संगठन में सक्रिय हुए। साइमन कमिश्न के बहिष्कार के लिए छात्रों के साथ आन्दोलन किया। कलकता में युवकों के सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष तथा सुभाष चन्द्र बोस और लोहिया विषय समिति के सदस्य चुने गए। 1930 में द्वितीय श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा पास की। 1930 जुलाई को लोहिया अग्रवाल समाज के आर्थिक सहयोग से पढ़ाई के लिए इंग्लैंड रवाना हुए। जहां से वे बर्लिन गये। विश्वविद्यालय के नियम के अनुसार उन्होंने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. बर्नर जेम्बार्ट को अपना प्राध्यापक चुना। 3 महीने में जर्मन भाषा सीखी। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने दांडी यात्रा प्रारम्भ की। जब नमक कानून तोड़ा गया तब पुलिस अत्याचार से पीड़ित होकर पिता हीरालाल जी ने लोहिया को विस्तृत पत्र लिखा। 23 मार्च को लाहौर में भगत सिंह को फांसी दिये जाने के विरोध में लीग ऑफ नेशन्स की बैठक में बर्लिन में पहुंच कर सीटी बजाकर दर्शक दीर्घा से विरोध प्रकट किया। सभा कक्ष से उन्हें निकाल दिया गया। भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे बीकानेर के महाराजा द्वारा प्रतिनिधित्व किये जाने पर लोहिया ने खुली चिठी लिखकर उसे अखबारों में छपवाकर उसकी कॉपी बैठक में बंटवाई। गांधी इर्विन समझौते का लोहिया ने प्रवासी भारतीय विद्यार्थियों की संस्था मध्य यूरोप हिन्दुस्तानी संघ की बैठक में संस्था के मंत्री के तौर पर समर्थन किया। कम्युनिस्टों ने विरोध किया। बर्लिन के स्पोटर्स पैलेस में हिटलर का भाषण सुना। 1932 में लोहिया ने नमक सत्याग्रह विषय पर अपना शोध प्रबंध पूरा कर बर्लिन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।