पहला दिन, 9 अगस्त 2009 - मुम्बई लोनावाला पिंपरीचिचवड़,
पुणे
डॉ. राममनोहर लोहिया सप्तक्रांति विचार यात्रा से जुडे़ साथी सुबह 7.45 बजे मुम्बई चौपाटी पहुंचे, जहॉ 1942 के बाद से आज तक हर वर्ष स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इकट्ठे होकर मौन जुलूस के रूप में अगस्तक्रांति मैदान स्मारक पर पहुंचकर पुष्पाजंली अर्पित करते है। डॉ जी.जी. पारिख जी, न्यायमूर्ति चन्द्रषेखर धर्माधिकारी एवं मुम्बई के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बालगंगाघर तिलक के पुतले के नजदीक इकट्टे हुये, जिनमें युसूफ मेहरअली विद्यालय के छात्र, छात्राए भी थे। डॉ. जी.जी. पारिख के प्रस्ताव पर मैंने सभी उपस्थित साथियो की ओर से पुष्पाजंली अर्पित की तथा धर्माधिकारीजी ने सरदार पटेल के पुतले पर सभी साथियो की ओर से पुष्पाजंली दी। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार अनुराग चतुर्वेेदी, समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र के अध्यक्ष अबू आजमी भी मौजुद थे। सभी मौन जूलूस बनाकर अगस्तक्रांति मैदान पहुंचे। जहॉ भारी संख्या में पुलिस बल मौेजुद था। वहॉ डॉ. बाबा अढ़ाव, प्रो. सुभाष बारे, सुभाष लोमटे एवम् कष्टकारी संघर्ष समिति के सभी प्रमुख नेता मौजूद थे। सभी साथ मिलकर स्मारक पर गये, तथा शहीदो को पुष्पाजंली अर्पित की।
तभी पुलिस अधिकारियो ने कहा कि मुख्यमंत्री पहुंच रहे है, आप लोग बाहर चले जाईये। डॉ. जी.जी. गुस्से में बोले की मर जायेंगे हटेंगे नही। मैंने संतोष ठाकुर से हैन्डमाईक लेकर नारे लगवाने शुरू किये। सुरेद्र मोहनजी, डॉ. जी.जी. पारिख, शांति पटेल ने अपने विचार रखे। सुरेन्द्र मोहन जी स्वंय कैप्टन अब्बास अली को लेकर स्टेशन से सीधे अगस्तक्रांति मैदान आये। मुख्यमंत्री ज्यो ही श्रद्धाजंली देने पहुंच,े सुभाष बारे जी ने नारा लगाया ''ये आजादी झूठी हैं, देश की जनता भूखी हैं''। कैप्टन अब्बास अली ने 'करो या मरो' के नारे का उल्लेख करते हुए जोशीले अंदाज में भाषण दिया। मुख्यमंत्री के आने के बाद भी हमारा कार्यक्रम चालू रहा भाषण और नारे चलते रहना, यह कल्पना किसी भी दूसरे राज्य में करना मुष्किल है मैंने अनुराग जी से पूछा की यह कैसे हुआ की मुख्यमंत्री और अनेक मंत्रियो सत्तारूढ़ दल के नेताओं के स्मारक पर आने के बावजूद पुलिस द्वारा स्मारक से हम सबको बाहर नही किया गया? मैंने कहा कि किसी भी दुसरे राज्य में यह संभव नही है एैसी स्थिति बनाने के लिए समाजवादी बधाई के पात्र है। तब अनुराग जी ने बताया की एक बार मृणाल गोरे जी ऐसे ही भाषण कर रही थी, तब पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किया गया था तब मुम्बई में यह बहस छिड़ी थी कि अगस्त क्रांति स्मारक पर सरकार का अधिकार है या जनता का? उस घटना के बाद कभी भी अगस्त क्रांति मैदान में समाजवादिवायो को छेड़ने की हिम्मत महाराष्ट्र पुलिस की नहीं हुई।