" प्रणय और अनुराग ही
ऐसे मधुर दो साज़ हैं
गीत की जो धुन बने
हर दर्दे दिल के साथ हैं ।"भूल गए वह मुझे
पर भुला सका न मैं
प्रणय के इस खेल में
हुई उनकी जीत रेनयन में न प्यार है
न कोई उमंग है
पूछे उनसे ही कोई
कैसी है यह प्रीत रेटूट गए स्वप्न सारे
बिखर गए गीत रे
मिला न मगर कोई
अपने मन का मीत रेडगर पे बढ़े मगर
थक गए पाँव रे
तप्ता रहा गात भी
मिली कहीं न छाँव रेराहें थीं अलग-अलग
थे विचार भी अलग-अलग
बँध गए एक डोर से
कैसी जग की रीति रेबुझे-बुझे नयन दीप
ढूंढते उमंग रे
खो गई खुशी कहाँ
पूछते यह गीत रेभूल गए वह मुझे
पर भुला न सका मैं
प्रणय के इस खेल में
उनकी हुई जीत रे ।