"ख्वाब पुराना याद आया"

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जब हवा चली तेज़ी से और पेड़ जला था घर का, तब ख्याल मुझे यह आया यह पेड़ था इस आँगन का
एक दिन जो पेड़ को हवा में जलते देखा
याद एक ख्वाब पुराना आया,
है यही पेड़ पुराने घर का ।
इसके साए में बढ़े और पले हम थे कभी
इसकी बाहों में सुकून पाया था कभी
इसकी डालों को हम ही जलाने आए
जिसकी डालों पे कूकती कभी कोयल न थकी
जिसके साऐ में कभी नींद बहुत आई थी
उसको बस आज जला कर खाक किया
उसकी बरबादी का गम आज हमें कुछ न हुआ
सोचते यह भी नहीं यह तो था साया   घर का
यह तो बुढ़ापे में खड़ा हम को हवा देता रहा
इसने उम्मीद न की सींचे कोई पानी से
सूख गई डाल मगर हँसता रहा
आज खुद अपने हाथों से उसे फूँक wदिया
बंद आँखों ने मेरी उसको कई बार छुआ ।

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