"थके -थके से दिख रहें हैं"

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   कश्ती लड़ती है तूफाँ से
    दीपक उलझा तेज़ हवा से

          क्यों बादल घिर-घिर आते हैं
          क्या संदेश मुझे लाते हैं

   उठो अकेले क्यों बैठे हो
    जीवन के इस तन्हा पल में

         हँसो और महकाओ जीवन
         जीवन के एकाकी पल में

    उदास शाम है हवा रूकी है
    चुप है समाँ डाल झुकी है

       पीले पल्लव डाली से टूटे
        उड़-उड़ कर अब बिखर गए हैं

   लड़ते-लड़ते इस जीवन से
   थके-थके से दिख रहें हैं।
   
            
        
              

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