स्त्री

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माँ तुम क्यों कहती हो कर स्त्री का सम्मान,
जब हर पल होता है उसका अपमान,
क्यों सिखाते हैं हमे स्त्री-पुरुष समान,
जब करना ही है उनका अपमान.....

क्यों कहते है, कर स्त्री का सत्कार,
जब खुद ही सब करते है उसपर अत्यचार,
करती है जो हमारा भरण-पोषण,
क्यों होता है माँ उसका शोषण.....

वो कहते है करेंगे हम स्त्री को सबला,
तब क्यों है माँ स्त्री शब्दकोश में अबला,
क्यों कहते है, स्त्री ही जननी है,
जब सबकी ऐसी बुरी करनी है.....

सतयुग से कलयुग की यही कहानी,
हर बार क्यूँ माँ, स्त्री को ही पड़ी कीमत चुकानी,
रोक न सके इसे कृष्ण और राम के अवतार,
आखिर होना पड़ा द्रौपदी और सीता को भी इनसे दो-चार.....

माँ ये कैसा अंतर है,
हमे ताकत तो उन्हें रूप का मन्तर है,
कैसे होंगे माँ दोनों समान,
जब दोनों में ही इतना अंतर है.....

क्यों हमारी सारी गलतियों पर पर्दा है,
जब उनकी एक चूक पर सरे-आम चर्चा है,
माँ तू भी तो करती उस दुर्गा और लक्ष्मी की पूजा है,
तब क्यूँ तेरे घर आई कोई लक्ष्मी दूजा है.....

माँ क्या ये स्त्री की कोई गलती है,
काट खुद के तन उसने रावण को सिजा है,
की लुटा दिया उसने अपना सब कुछ,
इसलिए उनका खुदा उनसे रूठा है....।।।
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सूरजउपाध्याय©

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