भूत-वूत कुछ नहीं होते साहब ....

931 18 5
                                    


नितिन बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था ।  अरे, अभी थोड़ी देर पहले ही तो देखा था, रात के 11 बजे थे ।   हम्‍मम... अभी फिर देख रहा हूँ तो भी घड़ी में 11 ही बजे हैं?  नितिन ने गहरी सांस ली ।  कहीं मेरी घड़ी तो खराब नहीं हो गई है।    नितिन मन-ही-मन बुदबुदाया ।  

वह पास वाले सज्‍जन को झिंझोड़ते हुए बोला 'भाई साहब, कितना बजा है?' नींद में चूर होकर बार-बार नितिन के कंधे पर सिर रख कर सो रहा वह अजनबी भी हाजिर-जवाबी से बोला 'कल रात इस समय जितना बजा था, अब भी उतना ही बजा है, आप निश्चिंत रहिए, आपका स्‍टेशन जब आएगा तो मैं आपको बता दूंगा ।'

बोलते  वक्‍त उस अजनबी के मुँह से बीड़ी की बास आ रही थी ।   नितिन झल्‍ला उठा, अपने कंधे से उस सज्‍जन के सिर को झटकते हुए बोला 'महाशय! अपने सिर को सीधे रखकर अपनी सीट पर सोइए । आप बार-बार क्‍यों नींद में मेरी ओर लुढ़क जाते हैं?

धोतीधारी अधेड़ उम्र का वह व्यक्ति भी हड़बड़ाकर सीधा हो गया ।  नितिन उसकी ओर घूरते हुए सोच रहा था कि शायद यह किसान या दिहाड़ी मजदूर होगा और दिन भर की मेहनत के बाद कुछ पैसे कमा कर अपने घर जा रहा होगा ।    थोड़ी देर में सब कुछ सामान्‍य हो गया ।  यूं तो नितिन हमेशा बस में घोड़े बेच कर सोता है पर आज न जाने क्‍यों नितिन को नींद नहीं आ रही थी, उसे पता था कि बस बहुत लेट हो चुकी है ।   विचारों के आवेग में बहता हुआ नितिन शून्‍य की ओर ताकने लगा ।  

उसे रात को 8 बजे ही अपने भैया की ससुराल पहुंच जाना चाहिए था, पर इस मरियल बस की लेटलतीफी ने सब गुड़गोबर कर दिया ।   शून्‍य की ओर ताकते हुए स्‍मरण हो आया कि जब वह छोटा था तो भाभी के साथ उनके पीहर आ जाता था ।  उसे भाभी का पीहर बहुत अच्‍छा लगता, वहाँ उसकी खुब आवभगत होती और लौटते समय नेग भी मिलता और गांव की लड़कियां गीत गा-गा कर उसे तंग करतीं । सब कुछ कितना अच्‍छा था । जब से इंजीनीरिंयग की पढ़ाई के सिलसिले में अपना घर छोड़ कर दूर शहर में होस्‍टल में रहना शुरू किया तब से गांव-गवाड़ सब पीछे छूट गए ।   कितने साल बाद वह अपनी भाभी के पीहर वापस जा रहा है, भाभी को लिवाने के लिए ।  इन दिवाली की छुट्टियों में जब उसने घर में कदम रखा ही था तो मां ने सबसे पहले कहा नितिन आज तू आराम कर लें, पर कल पहली गाड़ी से अपनी भाभी को ले आ, पूरे दस दिन हो गए हैं उसे अपने पीहर गए हुए ।   दशहरे की छुट्टियों में गई थी, अब तो दिवाली आ गई है ।  दिवाली के बाद बच्‍चों के स्‍कूल भी खुल जाएंगे । तू भी दो-तीन दिन रहेगा, तेरी भाभी और भतीजे तेरे साथ होंगे तो ठीक रहेगा ।  फिर सौ काम होते हैं दिवाली के मौके पर उस महारानी को पता नहीं है क्‍या? बोलते-बोलते मां का लहजा थोड़ा कठोर हो गया ।  नितिन भला अपनी मां की बात कैसे टाल सकता था, उसे भी भाभी और भतीजों से लगाव था और सबसे बड़ी बात यह था कि उसे भाभी के पीहर जाने का मौका मिल रहा था ।   

आप प्रकाशित भागों के अंत तक पहुँच चुके हैं।

⏰ पिछला अद्यतन: Jul 03, 2017 ⏰

नए भागों की सूचना पाने के लिए इस कहानी को अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें!

भूत वूत कुछ नहीं होते।जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें