कितनी बाँधी जिल्दें मैंने जीवन की
लेकिन पृष्ठ प्यार के खुले मिले ।प्रथम प्रष्ठ पर भरा रात का सपना
पृष्ठ दूसरा जीवन को छल कहता
किरणें तो करतीं धरती का राज तिलक
किन्तु चाँद के हाथ कमंडल रहता।पृष्ठ तीन पर असफलताओं के अक्षर
कहते हैं तुम सुनो हमें कुछ कहना है
कैद किया क्यों मुझे फटी पुरानी पुस्तक में
और जिल्द कितनी पुस्तक को सहना है।कितना मना किया स्याही ने भावों को
लेकिन वह तो लिपट नोंक से गले मिले
पृष्ठ प्यार के खुले मिले ।पृष्ठ चार पर अर्चन -दर्शन की बातें
जान बूझ कर उसको पढ़ना छोड़ दिया
मैंने तो देखा है जीवन दर्शन में
जिससे जोड़ा नाता उसने तोड़ दिया है।रसवाली रसना का सब रस सूख गया
अंतर भी कब तक उधार दे बेचारा
कैसे कहूँ कि मेरे पास भरा सागर
एक बूँद की खातिर जल में कितना भीगे।कितना चाहा करूँ आचमन मधु स्वर का
लेकिन विष कण शब्द-शब्द के घुले मिलेअगर भूल से मौत कही पर आ जाए
डरती हूँ क्या दुँगी जब कुछ पास नहीं
इतना रौंदा है इस जुल्मी दुनिया ने
रोऊँ क्या जब आँसू पर विश्वास नही है।आँसू के बदले में जो खाता पाया था
विश्व बैंक में भी जाने क्यो भुना नहीं
पीर जमा थी बहुत प्यार के खाते में
उसका माँगा ब्याज किसी ने सुना नहीकितना पहरा कठिन साँस की रोकड़ पर
लेकिन ताले द्वा-द्वार के खुले मिले ।