वो बेनाम रिश्ता

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छुट्टियां खत्म हो चली थी मैं फिर से लौटनें के लिए बस का इंतजार कर रही थी। अचानक से मेरी नज़र एक शख्स पर गई जो अपनी उंगलियाँ मुस्कुरातें हुए मोबाइल पर घुमा रहा था। तभी बस आ गयी मेरा ध्यान टूटा। बस में चढ़ी और खाली सीट देख कर खिड़की के पास बैठ गई। मेरे पास कोई आकर बैठ गया था अचानक नज़र गई वो वही शख्स था। खैर वो अपने मोबाइल पर अपनी उँगलियाँ दौड़ा रहा था और मैं अपनी किताब के पन्नें पलट रही थी।
अचानक उसनें कहा गुलज़ार साहब की फेन लगती हो और मेरी नज़र अपनी किताब पर ठहर गई फिर हल्की सी मुस्कुराहट से कहा - हाँ... और दौबारा गुलज़ार साहब को पढ़नें लग गई।
To be continued......

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⏰ Last updated: Aug 05, 2017 ⏰

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