यूँ बेरुख न हो जिंदगी हमसे क्या खता हुई।
अपनों को मनाने चले थे फिर क्यों खफा हुई।।
मनाते मनाते न जाने अपने ही क्यों रूठ गए ।
जिंदगी में फिर से वो बनते नाते टूट गए।।बनाई थी हमने भी कठंती माला,न जाने क्यों टूट गई।
रिशतों के इन नए भँवर में वो पगली भी हमसे रूठ गई।।
बनाने चले थे हम बिगता रिश्ता ,पर रिश्ता ही टूट गया।
न जाने क्या खता हुई वो एक प्यारा दोस्त रूठ गया।।पता नहीं समझ में क्या ना समझ हुई ,समझ ही पीछे रह गई।
समझ समझ का खेल है ,फिर समझ ही आखिर क्यों ना रही।।
रूठ गए सो रूठ गए ,अब आगे बढने की ठानी है।
बस अब जिन्दगी की ए नौका को किनारे पार लगानी है।।
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यूं बेरूख न हो जिंदगी
PoetryA poem based on real story of mine for a girl that I expressed through it...