भागी हुई लडकी

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सुबह का समय था. राजू सोया पड़ा था कि तभी किसी ने उसे झकझोर कर उठाया. राजू आँखे मलते हुए उठ गया. सामने मामी खड़ी थीं. मामी ने हांफते हुए कहा, "तुम्हे पता है रात छबीली घूरे के साले के साथ भाग गयी." राजू ने आँखे मिचमिचा कर देखा कि कहीं वो सपना तो नही देख रहा है. राजू मामी से बोला, "किसने बताया आपको?"

मामी हैरत से बोली, "कौन बतायेगा? पूरे गाँव को पता चल गया." राजू को बड़ा आश्चर्य हो रहा था. जब रात अपनी मौसी के देवर के साथ छत वाले कमरे में था तो छबीली घूरे के साले कलुआ के साथ इधर से उधर भाग रही थी. तब राजू ने सोचा था कि होगा कोई काम. क्योंकि गाँव में रामलीला चल रही थी. उसमे छबीली के पिता रावण का रोल करते थे और भाई मेघनाथ का

सारा घर रामलीला देख रहा था. इतने में छबीली कलुआ के साथ नौ दो ग्यारह हो गयी. लेकिन राजू के समझ में एक बात न आ रही थी कि छबीली ने कलुआ में ऐसा क्या देखा जो उसके साथ भाग गयी? क्योंकि कलुआ का रंग तवे की कारोंच सा काला था.

तभी तो नाम कलुआ पड़ा था. उसकी लम्बाई बांस की तरह लम्बी थी और उसी की तरह देह पतली. देखकर लगता था कि कोई मरियल आदमी चला आ रहा है. दांत पीले रंग के और रात में तो कलुआ के सिर्फ पीले दांत ही दिखाई पड़ते थे.

जबकि छबीली गोरी चिट्टी. भरे बदन की थी. उसे देख कर कोई भी लड़का दिल दे बैठे. गोरे मुखड़े पर काली काली आँखें, गालों पे काला तिल, लम्बी नाक उसपर गोल नथुनी. सुनहरे सोने से बाल जो कमर को छूते थे. तो फिर छबीली कलुआ के साथ क्यों भागी? राजू को इस बात का सबसे ज्यादा दुःख था न कि भागी क्यों इस बात का.

राजू फटाफट बिस्तर से उठा और बाहर की गली में आया जिधर छबीली का घर था और थोड़े से आगे कलुआ के जीजा घूरे का घर था. जैसे हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बार्डर और वैसी ही कुछ हालत थी वहां की.

कलुआ की बहन काली और छबीली की माँ रामजनी के बीच शब्दों के गोले दागे जा रहे थे. काली कह रही थी, "अपनी बेटी को संभालो तब मेरे भाई से कुछ कहना. जब लडकी दावत बाँटती फिरे तो लडके खावेंगे नही? बड़ी आयीं कलुआ को बदनाम करने वाली."

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