एक ख्वाब था, जो अब दर्द बन चुका है ।
कुछ लम्हे जो कि अभी शक्ल ही ले रहे थे, की छूट से गये है ।
बीतता ये वक़्त, मरहम की जगह उन्हे नासूर कर रहा है ।
और मैं हूँ कि उसे, फिर भी सजोये जा रहा ।
न जाने किस आस में, किस प्यास में ।
यूँ खुद को पिरोये जा रहा हूँ ।
नही, मैं बदला नही, मैं आज वहीं हूँ, जो कल था ।
फर्क सिर्फ इतना है कि हालतों को समझने लगा हूँ ।
आज चाँद जब फिर सबके आँखों मे सपनो की बारिश करेगा ।
और चाँदनी धीरे-धीरे सबको अपने आगोश में लेने की कोशिश में होगी ।
तब, हाँ तब मेरी, मुझसे बहस होगी ।
कौन हूँ मैं, और चाहता क्या हूँ ?------------------------------------------------------------------
#सूरजउपाध्याय