दास्तां ए बारिश

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हुए जुदा जो हम तो रास्ते बेनिशान हुए,
भीगी बारिशों में हम ख़ुद ही से अनजान हुए।
गुम हुई बारिशें मेरे दिल की दहलीज पर यूं आ गिरी,
संग तेरे भीगी यादे मेरे ख्यालो में बिन पूछे फिर आ घिरी।

नीली सी शामें तेरी याद संग लाती है,
मेरे उजाड़ मन को हर दफा भीगा जाती है।
गुजरे हुए लम्हों के किस्से ये बरसात दोहराती है,
ना मुकम्मल हुई मोहब्बत हमारी बारिशों में रंग लाती हैं।

अनकही दास्तां ये फिजाओं में गूंजती है,
वो बारिशें हर जगह तेरा पता पूछती हैं।
छतरी हाथ में ले कर,
मैं आज भी बरसात में भीगती हूँ।
इक उम्मीद लिए तेरा होने की,
मैं बारिशों में तुम्हें ढूंढती हूं।

कारवां ये मोहब्बत का,
या कहूं जुनून-ए-इश्क़ तेरी चाहत का,
एहसास तेरे वजूद का कराती हैं।
ये बारिशें तुझसे मिलने का,
पैगाम ए मोहब्बत मानसून की जुलाई में लाती हैं।।

- अंकिता गुप्ता

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⏰ Last updated: Feb 17, 2020 ⏰

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