Jodhapur ke gandhee bane rajasthaan ke payalatUntitled part

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बिलबिला उठे वो तारे जो टूटने वाले थे,जमीन पर बिठा दिया उन्हें, जिनके पाँव में छाले थे|

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बिलबिला उठे वो तारे जो टूटने वाले थे,
जमीन पर बिठा दिया उन्हें, जिनके पाँव में छाले थे|

आखिरी चुनाव, भाजपा को भीषण बहुमत और मुख्यमंत्री गहलोत के जोधपुर संभाग में सरदारपुरा सीट को छोड़ सब भाजपा के खाते में| राजनीतिज्ञों ने अनुमान लगाया और कह दिया की अब गहलोत के सफर का अंत हो गया है| राजस्थान में कांग्रेस को ज़िंदा करने के लिए किसी नए और दमदार चेहरे की जरूरत है| हाईकमान ने भी चेहरा ढूढ़ने कि कोशिश की और परिणाम स्वरुप दूध बेचने वाले के बेटे को प्रदेश की कमान सौंपी गयी|

युवा चेहरा, तेज तर्रार छवि, लेखक व केंद्र में मंत्री रहे सचिन को राजस्थान कांग्रेस का पायलट बनाया गया| इनके सामने बड़ी चुनौती थी| अभी कुर्सी संभाली ही थी की बाहरी होने का आरोप लगने लगा| जैसे जैसे ये उभरते गए वैसे वैसे विरोधियों के खेमे में चर्चा बढ़ती गयी| एक समय ऐसा भी आया जब मोदी लहर में सचिन खुद अजमेर से चुनाव हार गए| जायज सी बात थी सामने कई सवाल तो खड़े थे लेकिन सचिन ने उसका जवाब देना कभी जरुरी नहीं समझा| और जब दवाब दिया तब शीर्ष के नेताओं को संदेश पहुँच गया की "जोधपुर के गाँधी (अशोक गहलोत) की जगह लेने वाला आ गया है"

अजमेर से हारकर अजमेर को जिताया

मोदी लहर, जनता का विरोध और नतीजा सचिन को अजमेर लोकसभा में हार का सामना करना पड़ा| इसी चुनाव के करीब 4 साल बाद एक ऐसा मौका आया जब सचिन को वापस उसी रण में खोई हुई लाज बचाने का मौका मिला| इस दौरान प्रदेश में कई जगह उपचुनाव हुए| अजमेर में भी किन्ही कारण उपचुनाव होना तय हुआ| समय ने एक बार फिर सचिन को मौका दिया| हालाँकि सचिन खुद चुनाव तो नहीं लड़े लेकिन बूथ स्तर पर पकड़ इतनी मजबूत बनाई की भाजपा को अपनी सीट गवानी पड़ी और कांग्रेस प्रत्याशी बड़े अंतर से लोकसभा पहुंच गया|

उपचुनाव कांग्रेस जीत रही थी और गर्मी "जोधपुर" में बढ़ रही थी|

सचिन के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान में विधानसभा व लोकसभा के कुल 22 उपचानव हुए| सचिन ने शुरू से ही जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश की| नतीजे के रूप में "मेरा बूथ मेरा गौरव" जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत किया गया| परिणाम स्वरूप प्रदेश में हुए 22 में से 20 उपचुनावों में कांग्रेस को जीत मिली| सारा श्रेय प्रदेश अध्यक्ष को दिया गया और जैसे जैसे कामयाबी मिलती गयी वैसे वैसे "जोधपुर" में सुग बुगाहट बढ़ती गयी|

वो मंझा हुआ खिलाडी है, तभी उसे लोग "जोधपुर का गाँधी कहते हैं !!

विधानसभा चुनाव जैसे नजदीक आ रहे थे पत्रकारों के सवाल बढ़ते जा रहे थे| गहलोत की प्रेस कांफ्रेंस हो या पायलट की, अंत एक सवाल से ही होता "मुख्यमंत्री का चेहरा कौन ?"
मीडिया वाले उलूल जुलु खबरें फैलते और बनाते की "गहलोत" को किनारे कर दिया गया है| कई बार यह सवाल उस बुजुर्ग और धीमी चाल वाले नेता से भी किया जाता लेकिन वो आहिस्ते से जवाब देता "फैसला हाईकमान करेगा" और वो जवाबों के ढेर के आगे इन्हीं तीन शब्दों में पूर्ण विराम लगा देता था| "वो मंझा हुआ खिलाडी है" अक्सर मैं चर्चे में लोगों से कहता था लेकिन आज उसने में इस वाक्य को सही साबित कर दिया "वो जोधपुर का गाँधी है, शांत दानव है, बोलने में कम कर दिखाने में ज्यादा विश्वास रखता है !!"
अंत में हुआ वही, चुनाव के दौरान पायलट ने जबर उड़ान भरी राजस्थान का हर कोना हर संभाग एक कर दिया| सिर्फ इसलिए क्योंकि जयपुर का तख्ता हासिल करना था| कई दफा इंटरव्यू और कॉन्फ्रेंस में बोलते भी दिखाई दिए की "परिवार को समय नहीं दे पता" | लेकिन बाजी उसीने मारी जो समय का मजा लेता आहिस्ते आहिस्ते चलता, कम बोलता, दिल्ली में ज्यादा रहता और अंदर से आक्रामक था| क्योंकि वो मंझा हुआ खिलाड़ी है, उसे पता है, पाँव में छाले पड़ जाएंगे तो आगे की ज़िम्मेदारी निभाने में तकलीफों का समाना करना पड़ेगा और अंत में तो फैसला दिल्ली में ही होगा| नतीजतन जिसका खेल आज से करीब 5 साल पहले तमाम पत्रकारों व राजनीतिज्ञों ने खत्म बता दिया था, आज उसकी ताजपोशी की तैयारी फिर हो रही है| ये शेर इस "जोधपुर के गाँधी" ने सच कर दिखाया की

बात मुकद्दर की नहीं मन में बैठे डर की है,
ऐसा क्या है आखिर जो ये इंसा कर नहीं सकता|

source: molitics.in

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