रहते हैं एलियंस बीच हमारे
कब्ज़ा है उन् का इस ग्रह पर
बुदबुदा रहे थे पति ये मेरे
यह घर अब लगता नहीं है घर|
मिस कॉल करके माँ ने पुकारा
दरवाज़ा खोलो लग गया खाना
साथ में खाने बैठे फिर भी
रहती हैं आँखे ऑय- पैड पर|
रहते हैं साथ सभी हम मिलकर
दिखती हैं शक्ल सिर्फ डी पी पर
किसकी आँखों का रंग है कैसा
पता नहीं, नहीं हमें खबर|
मिलकर भी करते बात नहीं अब
मिलते इंटरनेट पर रोज़ मगर
स्टेटस है बस सोशल साइट पर
लोक समाज का नहीं है डर|
इंसान के भेस में, फिर रहे एलियंस
चल रहा एक्सपेरिमेंट हम सब पर
बुदबुदा रहे थे पति ये मेरे
कब्ज़ा है एलियंस का इस ग्रह पर||
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कुछ कविताऐं, कुछ नज़्म (Kuch Kavitaayein,Kuch Nazm)
Thơ caमेरी कुछ रचनाएँ आप सब के लिए। उम्मीद करती हूँ आपको पसंद आएँगी। मुझे comments ज़रूर भेजें, ताकि मुझे पता चलता रहे कि आप को मेरी रचनाएँ कैसी लग रहीं हैं। :)