मुक्कमल ख्वाहिश

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इक छोटी सी ख्वाहिश,जो कभी थी अधूरी,
अब मुक्कमल होने लगी है।
कुछ यार सच्चे मिले हैं, जिंदगी हसीन लगने लगी है।

बहुत गुजारे थे हमने पल,अकेले तनहाईयों में,
बहुत वक्त  गँवा दिया हमने,इन चार दिवारों में।

पर आज कुछ बदला-बदला सा, लगने लगा है,
वो सामने नहीं हैं तो क्या,ऩजारा बदल रहा है।

खुश तो वो भी हैं, पर शायद उतने नहीं,
लबों पे हँसी तो है,पर आँखों में झलकता नहीं।

मैं कर दूँ, कुछ ऐसा अब काम, की छाए चेहरे पे मुस्कान,
रहे फिर मस्त मगन हरपल ,हो जाए गमों से वो अनजान ।

मैं कर दूँ, कुछ ऐसा अब काम, की छाए चेहरे पे मुस्कान,रहे फिर मस्त मगन हरपल ,हो जाए गमों से वो अनजान ।

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