किसके लिए इतनी हो बैचैन, के हर काम से गई,
क्यों यारों के बीच में भी रहती हो खुश नहीं,
क्यों महफ़िल में भी एहसास है तन्हाई का तुमको,
तन्हाइयों में भी कभी रहती तन्हा नहीं,
खयाल वो है किसका, जो करता है बेकरार,
इंतज़ार में किसकी यह आंखें थकती नहीं,
जो कहूं अनजान, बेखबर, ऐ हमराज मेरे,
ना ढूंढो उसे, तुम ही हो, कोई और वो नहीं।Edited
हो बैचैन किस लिए, के बस हर काम से गई,
यारों के दरमियान भी रहती हो खुश नहीं,
महफ़िल में भी एहसास तन्हाई का तुमको,
तन्हाइयों में भी कभी तन्हा हो तुम नहीं,
खयाल है किसका, जो करता है बेकरार,
इंतज़ार में किसकी आंखें थकी नहीं?
जो कहूँ, ऐ अनजान, बेखबर, सनम मेरे,
ना ढूँढो उसे, तुम ही हो, कोई और वो नहीं।
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कुछ कविताऐं, कुछ नज़्म (Kuch Kavitaayein,Kuch Nazm)
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