कोरोना का सूट

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आज पूरे देश के लोग लॉकडाउन के इस दौर में अपने अपने तरीके से समय काटने के तरीके इजाद कर रहे हैं। मैंने जब आज के दिन की शतरंज की पाँचवी बाजी समाप्त की तो दिन के कोई चार बज चुके थे। उसके बाद मैं अपने छोटे परिवार के साथ बालकनी में बैठकर ठंडी हवा के साथ चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहा था। हर दो चुस्की के बीच हमलोग अपनी सोसाइटी के अन्य टावरों की बालकनियों की गतिविधियों को भी देख रहे थे। तभी हमारी आँखें कुछ ज्यादा ही खुल गईं और कान कुछ अधिक ही चौकन्ने हो गये क्योंकि सामने के टावर के मुख्य द्वार पर एक मोटरसाइकिल रुकी जिसपर बैठा हुआ युवक अजीब सी पोशाक पहने था। ऐसा लग रहा था कि वह मोटरसाइकिल से नहीं बल्कि किसी अंतरिक्ष यान से उतर रहा हो। उसका पूरा शरीर सफेद प्लास्टिक के रेनकोटनुमा ड्रेस से ढ़का हुआ था। उसका हेलमेट भी सफेद था जिसके वाइजर कुछ ज्यादा ही बड़े लग रहे थे। आनन फानन में उसके इर्द गिर्द सिक्योरिटी गार्डों की टोली जमा हो गई। मेरे बीसवें माले के फ्लैट से कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था इसलिए हम केवल अनुमान लगाने की स्थिति में थे। मेरी पत्नी को शक होने लगा कि जरूर उस टावर में कोई कोरोना का मरीज होगा और वह अंतरिक्ष यात्री नुमा युवक उसके सैंपल लेने आया होगा।

काफी हील हुज्जत के बाद सिक्योरिटी गार्ड ने उस युवक को अंदर जाने की अनुमति दे दी। उस हील हुज्जत के बीच मेरे मोबाइल पर दनादन एक के बाद एक बीप की आवाज आने लगी। मैंने मोबाइल में देखा तो कोई पच्चीस तीस मैसेज व्हाट्साऐप पर आ चुके थे। हर मैसेज में एक ही शंका जाहिर की गई थी कि जरूर उस टावर में कोई कोरोना से ग्रसित है। अब टावर के बाहर पहले की तरह खामोशी छा गई थी। अन्य लोगों की तरह हम लोग भी एकटक उस युवक के बाहर आने का इंतजार कर रहे थे।

इस बीच तरह तरह के मैसेज और मीम आने शुरु हो गये। कोई कह रहा था कि डरने की कोई बात नहीं है क्यों कोरोना के अधिकतर मरीज खुद ब खुद ठीक हो जाते हैं। कोई कह रहा था कि चूँकि हम सभी लोग लॉकडाउन का भलीभाँति पालन कर रहे हैं इसलिए चिंता करने की जरूरत नहीं है। कोई कह रहा था कि कहीं किराने की या सब्जी की दुकान आते जाते उस संदिग्ध से संक्रमण लग गया होगा तो फिर भगवान ही मालिक है। कोई शंका प्रकट कर रहा था कि कहीं हवा के सहारे कोरोना वायरस हमारे फ्लैट के अंदर घुस गया तो फिर प्रलय आ जायेगा। कोई यह डर जाहिर कर रहा था कि कहीं वाकई में इस सोसाइटी में कोरोना का मरीज निकल गया तो फिर पूरी सोसाइटी सील कर दी जायेगी और उसके बाद तो दूध और सब्जी के लिये भी बाहर निकलना बंद। जितनी मुँह उतनी ही बातें। हमारी सोसाइटी की जनसंख्या इतनी अधिक है कि किसी को भी ठीक से नहीं पता है कि अपने टावर में कौन कौन लोग रहते हैं फिर दूसरे टावर के बारे में तो अनुमान लगाना भी मुश्किल है। वो तो भला हो इस लॉकडाइन का कि मुझे मेरे सामने वाले फ्लैट में रहने वाले सज्जन का नाम पता चला है और उन्हें मेरा। वरना सभी केवल लिफ्ट में मिलते वक्त एक दूसरे को देखकर मुस्करा देते हैं और बस उतने से ही अपने सोशल इंटरऐक्शन का दायित्व पूरा कर लेते हैं।

लगभग एक घंटा बीत चुका था लेकिन उस अंतरिक्ष यात्री का कहीं पता नहीं चल पा रहा था। लगता है मेरी तरह कई अन्य लोग भी बेचैन हो रहे थे। लगभग पाँच साढ़े पाँच बजे उस टावर के मुख्य द्वार के पास इस सोसाइटी के आर डब्ल्यू ए के नेताओं की टोली जमा हो चुकी थी। वे लोग उस टावर के सिक्योरिटी गार्ड से पूछताछ कर रहे थे। बीच बीच में आर डब्ल्यू के कुछ गर्म दल के नेताओं के चिल्लाने की आवाज भी आ रही थी। अब पीछे से मेरी पत्नी और बच्चे का दबाव पड़ने लगा कि मैं नीचे जाकर मामले का पता करूँ। मैने जब कहा कि नीचे जाने से अच्छा है कि सोशल डिस्टांसिंग का पालन करता रहूँ तो मुझे अगले सात आठ दिनों तक झाड़ू पोंछा करने का दंड मिलने की आशंका होने लगी। यह आगे कुँआ और पीछे खाई वाली स्थिति थी। मुझे लगा कि जाकर कोरोना का सामना करने में ही भलाई है। कम से कम जब तक जीवित रहूँगा शांति से भोजन तो चलता रहेगा। आज जब अमेरिका जैसी महाशक्ति उसकी चपेट में आने से नहीं बच पा रही तो फिर हिंदुस्तान के एक आम आदमी की क्या औकात है। मैने तुरत अपना मास्क पहना, जेब में सैनिटाइजर की शीशी डाली और कागज को रॉल करके दो डंडियाँ बनाई जिससे लिफ्ट का बटन दबा सकूँ। पूरी तैयारी करने के बाद मैं अपने घर से निकला और अपने घर की सीता मैया के आदेश का पालन करते हुए लक्ष्मण रेखा को लांघ गया।

जब तक मैं नीचे उतर कर सामने वाले टावर के पास पहुँचा तब तक वहाँ पर सन्नाटा छा चुका था। सोसाइटी के सभी नेतागण सभा विसर्जित करके अपने अपने धाम को जा चुके थे। अब वहाँ पर केवल सोसाइटी का गार्ड नजर आ रहा था। उसका साथ देने के लिए उस टावर से प्रतिदिन भोजन प्राप्त करने वाला टॉमी वहीं बैठा दुम हिला रहा था। जब उस गार्ड से मैंने जानकारी ली तो मेरी जान में जान आई। उस टावर के किसी फ्लैट में एक डॉक्टर रहते हैं जिनकी ड्यूटी जिला अस्पताल में लगी हुई है। कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए एहतियात के तौर पर वह सारा तामझाम पहनकर ही अस्पताल से आना जाना करते हैं। वही सज्जन अपनी ड्यूटी समाप्त होने के बाद अपने घर को वापस लौटे थे। गनीमत है कि अभी तक जिला अस्पताल में कोरोना का एक भी केस नहीं आया है इसलिए उन डॉक्टर साहब को अपने घर आने की अनुमति मिली हुई है। बाद में क्या होगा यह बताना मुश्किल है। मैं अब निश्चिंत होकर वापस अपने घर जाने को मुड़ा ताकि अपनी पत्नी को यह खबर सुना सकूँ। अभी देर करना ठीक नहीं होगा क्योंकि इस बीच वह ना जाने कितने देवी देवताओं से मन्नत मांग चुकी होगी और फिर भविष्य में मुझे ना जाने कहाँ कहाँ पैदल ही चलकर दर्शन करने जाना पड़ेगा। 

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⏰ Last updated: Apr 05, 2020 ⏰

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