कोरोना काल में पी टी एम

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पी टी एम या पैरेंट्स टीचर मीटिंग से लगभग हर वो लोग परिचित होंगे जिनके बच्चे तथाकथिक इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं। आजकल तो दिल्ली के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माँ बाप भी पी टी एम का आनंद लेने लगे हैं। शायद इससे उनके अंदर का आत्मसम्मान भी बढ़ जाता होगा यह सोचकर कि वे भी अब मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग से बराबरी का दर्जा पा रहे हैं। पी टी एम एक ऐसा मौका होता है जब छात्रों की माताओं को बेहतर ढ़ंग से सजने संवरने का मौका मिलता है ताकि क्लास टीचर पर अपनी संपन्नता का प्रभाव डाल सकें। कई बच्चों के पिता के लिए यह मौका होता है जब वे बालों में खिजाब लगाकर अपनी ढ़लती उम्र को छुपाते हैं और फिर स्किन टाइट टी शर्ट पहनकर टीचर के सामने 1990 के दशक के फिल्म सितारों की छवि पेश करने की कोशिश करते हैं।

जबसे लॉकडाउन शुरु हुआ है तब से न तो पी टी एम हुआ और ना ही ऐसा मौका बच्चों के माँ बाप को मिला। लेकिन अभी कोई एक सप्ताह पहले मेरे बेटे ने बताया कि फलां तारीख को पी टी एम होगा और उसके रॉल नम्बर के मुताबिक मुझे और मेरी पत्नी को लाइव वीडियो कॉल के जरिये शाम के छ: बजे पी टी एम में शरीक होना पड़ेगा। थोड़ी देर बाद स्कूल से और भी गाइडलाइंस आ गई तो मेरे बेटे ने बताया कि पी टी एम में शरीक होते समय मैं बारमुडा और टी शर्ट नहीं पहन सकता हूँ, बल्कि मुझे बकायदा फॉर्मल ड्रेस में रहना पड़ेगा। फिर यह भी बताया गया कि कम से कम तीन लड्डू, दो अगरबत्ती और कुछ फूल का इंतजाम भी करना पड़ेगा। घर में जब भी नया कम्प्यूटर आया है तब अपनी पुरातन परंपरा का निर्वाह करते हुए हमलोगों ने नारियल फोड़कर और धूप बत्ती दिखाकर ही कम्प्यूटर का उद्घाटन किया है। लेकिन पुराने लैपटॉप या मोबाइल के लिए यह इंतजाम कुछ ज्यादा ही लग रहा था। खैर, हमने अगले दिन मुहल्ले के किराने की दुकान से हल्दीराम के लड्डू के पैकेट खरीदे, अपनी बालकनी में लगी बगिया में से कुछ पुष्प तोड़े और अगरबत्ती और माचिस लेकर लैपटॉप के पास रख दिया। फिर मैने काली पतलून और धारीदार शर्ट पहन ली और श्रीमती जी ने एक नई सी दिखने वाली शिफॉन की साड़ी पहन ली। श्रीमती जी ने आँखों में काजल के साथ साथ होठों पर लिपस्टिक भी लगा लिया। बड़े दिनों के बाद आखिर उन्हें भी ढ़ंग से श्रृंगार करने का मौका जो मिला था। नहीं तो आजकल पूरा दिन नाइटी में ही निकल जाता है।

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