'ज़िन्दगी'

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ज़िन्दगी में चार दिन को
           आई धी रंगीनियाँ।
ठहरने भी न पाई ,
           दे गई तारीकियाँ।।
साथ देने में हमारा,
           यूँ वे घबराने लगे।
जैसे दामन में थीं लिपटी,
       उनके कुछ मज़बूरियाँ।।
लाख समझाया मगर,
   रूख उनका बदला ही रहा।
फेर लीं नज़रें हमीं से ,  
          र॔ग बदला ही रहा ।।
दिल भी टूटा आस टूटी,
         सब बिखर अरमाँ गये ।
आशियाँ के चन्द तिनके,
        बस बिखर कर रह गये ।।

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