दर्पण (Darpan)

5 1 0
                                        

एक था दर्पण,
एक था बचपन,
ना जाने कहां गया वो बचपन,
ना जाने कब आई जवानी,
छूट गया सबकुछ पीछे,
बस साथ रह गया ये दर्पण।

हम संवारते हज़ारों बार अपने आप को इस दर्पण में,
हम देखते करोड़ों बार अपने आप को इस दर्पण में ,
लेकिन पहचान सके ना खुद को कभी इस दर्पण में,
भले देख लेते खुद को बाहर से इस दर्पण में,
लेकिन कभी ना जान पाए क्या है हमारे अंदर...
इस दर्पण में।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
So the third poem is here now...after a long time.
I hope you'll like it.
Please keep voting and commenting, that really keeps me motivated.
Lots of love💞💞
Stay safe and happy ♥️♥️♥️

दर्पण (Darpan)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें