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ज़िंदगी का आख़री सफ़र... by suneelgoyal
suneelgoyal
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लॉकडाउन को लगभग 40 दिन पूरे हो चुके थे, सभी अपने-अपने घरों में बंद थे. अमीरों के लिए तो ये लॉकडाउन छुट्टियां, अपने परिवार के साथ समय बिताने, खाने-पीने और मोज मस्ती का बहाना था. मिडिल क्लास के लिए थोड़ा मुश्किल समय था, क्योंकि ऑफिस का काम कम हो चला था, सर पर सैलरी कट या फिर जॉब चले जाने का ख़तरा मंडरा रहा था. पर सबसे बुरा हाल था मज़दूरों, दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग, रेहड़ी, पटरी वालों का. ये मेहनतकश मज़दूर कॉरन्टीन, लॉकडाउन, सेल्फ आइसोलेशन जैसे बड़े-बड़े शब्द नहीं जानते, ये जानते हैं तो सिर्फ़ भूख क्योंकि जब पेट की अंतड़ियां भूख से सूखती हैं ना, तो बातें नहीं, सिर्फ़ रोटियां याद आती हैं.