user45225076
क्या हसीन शामें थी, सुरमई उजाले थे,
यारों कि बस्ती, डेरे तितलियों ने डाले थे।
आसमां मिले वहाँ जहाँ धरा का छोर हो,
क्या अरमां था हमने क्या सपने पाले थे।
कोई शख्स था तूफानों का रुख मोड़ गया,
इन हवाओं में चिराग कहाँ जलने वाले थे।
न शिकवा रहा किसी से न कोई गिला,
हमने जमाने के रंग खूब देखे भाले थे।
पत्थरों पर चलने का हुनर आ ही जाता है,
बढ़ते रहे आगे सदा बेशक पावँ में छाले थे।
तेरे शहर में 'पुरी' अमनों सकूँ मिलता कहाँ,
सलीबों पर गिरे पत्थर हमने ही उछाले थे।
Naphe Singh Kadhian Gaganpuri