"नारी की व्यथा"
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Ongoing, First published Apr 21, 2017
यह कृति पूर्ण रूप से नारी की जीवनी पर आधारित हैं जिसमें यह बताया गया हैं कि आज भी नारी सबला होकर कहीं न कहीं अबला ही हैं किसी न किसी मजबूरी के चलते उसका जीवन आज भी सबल नहीं हैं आज भी नारी पूर्ण रूप से न सही मगर अर्धरूपेण वह सबला के ढाँचे में अबला ही हैं...(यह बात सभी नारियों पर लागू नहीं हैं)

पाठकों से मेरा विनम्र निवेदन रहा हैं सदैव कि वे अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दिया करें इस से एक लेखक/लेखिका का हौंसला बढ़ता हैं जो उसे आगे लिखने के लिये प्रेरित करता हैं...

मेरी किसी भी कृति को बिन मेरी इजाजत के Publish करने का दण्डनीय कृत्य न किया जाए....

धन्यवाद....?
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"Baaz rehte hain jo mohobbat se aise ahmaq zaheen hote hain" ~Siddharth Ashok Shukla . . . "waapsi tumpar farz thodi hai ye mohobbat hai , qarz thodee hai" ~ Shehnaaz gill