क्या हमने ऐसे ही समाज की नीव रखी थी? जहा इंसान इंसान का ही दुश्मन बन बैठे.... लालच मे अँधा इंसान अपने रिश्ते की मान मर्यादा को इसी तरह खंडित करता रहे, क्या यही हमारे समाज की बुनियाद है? अब उसकी बाकी चार बहनो का क्या होगा? और ना जाने ऐसे कितने ही अनस ुलझे सवालो के साथ अपने भविष्य की चीजे जोड़ने हम बड़े शहर आ गए थे और भी ज्यादा काबिल बनने के लिए.....!
पर आप सोचियेगा जरूर जिस अनिश्चत भविष्य के लिए हम अपने वर्तमान,अपने आज को खो रहे है, आज की भाग दौड़, ईर्ष्या- द्वेष, लालच, स्वार्थ के जिस दलदल मे हम फंसते जा रहे है, क्या ये वाकई हमें एक उज्जवल भविष्य दे पाएगा?