गंगासागर धन्य
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Ongoing, First published Mar 12, 2019
गंगासागर धन्य माघ मे स्नानार्थी सब डूबकी देत ;
मकर-संक्राँतिक पुण्य पर्व मे उत्तरायण सूर्यक सुधि लेत।
नया वर्ष केर भेल पदार्पण अछिशिशिरक अवसानक काल;
आबि रहल रितुपतिक सवारी नील नभक प्रत्यासित भाल।
सृष्टि सँ स्निग्ध जुडल प्राणी केर तन-मन होएत स्वत: स्फूर्त;
व्यष्टि-व्यष्टि होइए समष्टि सँ तुलित-सम्पुटित पाबि मुहूर्त।
भारतीय मानसक उड़ान मे सागर लहरि भरि जाइछ छन्द;
लौकिक-सांस्कृतिक प्रभाष तैं युग-युग से चलि रहल अमन्द।
शब्द सुभग संक्रान्ति सुहावन लबइत अछि परिवर्तनक हिलोर;
मुग्ध माँगलिक विभा पसारति छूबि भू-गगनक ओर आ छोर।
जाडठाढ भएनहुँ समग्र अछि नहिं लघु वीचि-विचुम्बन मन्द ;
सुनि पदध्वनि अबइत आदित्यक उष्मा भरइत अछि आनन्द ।
शारदा नन्द दास परिमल
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