2 parts Ongoing संघर्ष का दीपक
वर्दी का सपना टूटा, जब माँ बनी दुल्हन।
ससुराल में तानों की तपिश, हर पल बढ़ा मन का मंथन।
पर छह बेटियाँ आईं जब, माँ ने गढ़ा नया विधान,
टूटे सपनों की राख से ही, जगाया शिक्षा का ज्ञान।
कलम की ताकत पहचानी, जब रोकी गई मेरी पढ़ाई,
विरोध की हर दीवार को, माँ ने अकेले ही ढहाई।
वह खेत, वह हाट-बाज़ार, हर जगह उनका पसीना,
मेरे लिए उनका बलिदान, है जीवन का अनमोल नगीना।
इंजीनियर हूँ, पर बेरोज़गार, दर्द का बोझ आज भी है,
आँसू रात के, पर सुबह में, माँ का संकल्प ही ज़िद है।
यह कलम नहीं, माँ की विरासत है मेरी,
मैं लिख रही हूँ वो तकदीर, जो माँ की अब तक अधूरी।
विश्वास है उस शक्ति पर, जो राह हमेशा दिखाती है,
माँ के हिस्से की हर ख़ुशी, बेटी बनकर मैं लाती हूँ।