ना- मुकम्मल इश्क़ हो तो जिंदगी अधूरी सी हो जाती है। कई बार हम डिप्रेशन, एंग्जायटी, इमोशनल डिसऑर्डर, इंसेक्यूरिटी, पोस्ट-ट्रोमा पीरियड के ऐसे एब्नार्मल फेज से गुजरते है जिनके अनुभव ताउम्र काले बादलों की तरह हमारे जेहन में छाये रहते है। ना- मुकम्मल इश्क़ के इसी मनोविज्ञान को कुछ लाइन्स के जरिये उतारने की कोशिश की है।All Rights Reserved